2.2

चौपाई
एक समय सब सहित समाजा। राजसभाँ रघुराजु बिराजा।।
सकल सुकृत मूरति नरनाहू। राम सुजसु सुनि अतिहि उछाहू।।
नृप सब रहहिं कृपा अभिलाषें। लोकप करहिं प्रीति रुख राखें।।
तिभुवन तीनि काल जग माहीं। भूरि भाग दसरथ सम नाहीं।।
मंगलमूल रामु सुत जासू। जो कछु कहिज थोर सबु तासू।।
रायँ सुभायँ मुकुरु कर लीन्हा। बदनु बिलोकि मुकुट सम कीन्हा।।
श्रवन समीप भए सित केसा। मनहुँ जरठपनु अस उपदेसा।।
नृप जुबराज राम कहुँ देहू। जीवन जनम लाहु किन लेहू।।

दोहा/सोरठा
यह बिचारु उर आनि नृप सुदिनु सुअवसरु पाइ।
प्रेम पुलकि तन मुदित मन गुरहि सुनायउ जाइ।।2।।

Pages