चौपाई
सभा सकल सुनि रघुबर बानी। प्रेम पयोधि अमिअ जनु सानी।।
सिथिल समाज सनेह समाधी। देखि दसा चुप सारद साधी।।
भरतहि भयउ परम संतोषू। सनमुख स्वामि बिमुख दुख दोषू।।
मुख प्रसन्न मन मिटा बिषादू। भा जनु गूँगेहि गिरा प्रसादू।।
कीन्ह सप्रेम प्रनामु बहोरी। बोले पानि पंकरुह जोरी।।
नाथ भयउ सुखु साथ गए को। लहेउँ लाहु जग जनमु भए को।।
अब कृपाल जस आयसु होई। करौं सीस धरि सादर सोई।।
सो अवलंब देव मोहि देई। अवधि पारु पावौं जेहि सेई।।
दोहा/सोरठा