चौपाई
कियउ निषादनाथु अगुआईं। मातु पालकीं सकल चलाईं।।
साथ बोलाइ भाइ लघु दीन्हा। बिप्रन्ह सहित गवनु गुर कीन्हा।।
आपु सुरसरिहि कीन्ह प्रनामू। सुमिरे लखन सहित सिय रामू।।
गवने भरत पयोदेहिं पाए। कोतल संग जाहिं डोरिआए।।
कहहिं सुसेवक बारहिं बारा। होइअ नाथ अस्व असवारा।।
रामु पयोदेहि पायँ सिधाए। हम कहँ रथ गज बाजि बनाए।।
सिर भर जाउँ उचित अस मोरा। सब तें सेवक धरमु कठोरा।।
देखि भरत गति सुनि मृदु बानी। सब सेवक गन गरहिं गलानी।।
दोहा/सोरठा