चौपाई
देह दिनहुँ दिन दूबरि होई। घटइ तेजु बलु मुखछबि सोई।।
नित नव राम प्रेम पनु पीना। बढ़त धरम दलु मनु न मलीना।।
जिमि जलु निघटत सरद प्रकासे। बिलसत बेतस बनज बिकासे।।
सम दम संजम नियम उपासा। नखत भरत हिय बिमल अकासा।।
ध्रुव बिस्वास अवधि राका सी। स्वामि सुरति सुरबीथि बिकासी।।
राम पेम बिधु अचल अदोषा। सहित समाज सोह नित चोखा।।
भरत रहनि समुझनि करतूती। भगति बिरति गुन बिमल बिभूती।।
बरनत सकल सुकचि सकुचाहीं। सेस गनेस गिरा गमु नाहीं।।
दोहा/सोरठा
नित पूजत प्रभु पाँवरी प्रीति न हृदयँ समाति।।
मागि मागि आयसु करत राज काज बहु भाँति।।325।।
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