चौपाई
सोइ जस गाइ भगत भव तरहीं। कृपासिंधु जन हित तनु धरहीं।।
राम जनम के हेतु अनेका। परम बिचित्र एक तें एका।।
जनम एक दुइ कहउँ बखानी। सावधान सुनु सुमति भवानी।।
द्वारपाल हरि के प्रिय दोऊ। जय अरु बिजय जान सब कोऊ।।
बिप्र श्राप तें दूनउ भाई। तामस असुर देह तिन्ह पाई।।
कनककसिपु अरु हाटक लोचन। जगत बिदित सुरपति मद मोचन।।
बिजई समर बीर बिख्याता। धरि बराह बपु एक निपाता।।
होइ नरहरि दूसर पुनि मारा। जन प्रहलाद सुजस बिस्तारा।।
दोहा/सोरठा
भए निसाचर जाइ तेइ महाबीर बलवान।
कुंभकरन रावण सुभट सुर बिजई जग जान।।122 ।
1.122
Pages |