3.22

चौपाई
सुनत सभासद उठे अकुलाई। समुझाई गहि बाहँ उठाई।।
कह लंकेस कहसि निज बाता। केंइँ तव नासा कान निपाता।।
अवध नृपति दसरथ के जाए। पुरुष सिंघ बन खेलन आए।।
समुझि परी मोहि उन्ह कै करनी। रहित निसाचर करिहहिं धरनी।।
जिन्ह कर भुजबल पाइ दसानन। अभय भए बिचरत मुनि कानन।।
देखत बालक काल समाना। परम धीर धन्वी गुन नाना।।
अतुलित बल प्रताप द्वौ भ्राता। खल बध रत सुर मुनि सुखदाता।।
सोभाधाम राम अस नामा। तिन्ह के संग नारि एक स्यामा।।
रुप रासि बिधि नारि सँवारी। रति सत कोटि तासु बलिहारी।।
तासु अनुज काटे श्रुति नासा। सुनि तव भगिनि करहिं परिहासा।।
खर दूषन सुनि लगे पुकारा। छन महुँ सकल कटक उन्ह मारा।।
खर दूषन तिसिरा कर घाता। सुनि दससीस जरे सब गाता।।

दोहा/सोरठा
सुपनखहि समुझाइ करि बल बोलेसि बहु भाँति।
गयउ भवन अति सोचबस नीद परइ नहिं राति।।22।।

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