चौपाई
दिसकुंजरहु कमठ अहि कोला। धरहु धरनि धरि धीर न डोला।।
रामु चहहिं संकर धनु तोरा। होहु सजग सुनि आयसु मोरा।।
चाप सपीप रामु जब आए। नर नारिन्ह सुर सुकृत मनाए।।
सब कर संसउ अरु अग्यानू। मंद महीपन्ह कर अभिमानू।।
भृगुपति केरि गरब गरुआई। सुर मुनिबरन्ह केरि कदराई।।
सिय कर सोचु जनक पछितावा। रानिन्ह कर दारुन दुख दावा।।
संभुचाप बड बोहितु पाई। चढे जाइ सब संगु बनाई।।
राम बाहुबल सिंधु अपारू। चहत पारु नहि कोउ कड़हारू।।
दोहा/सोरठा
राम बिलोके लोग सब चित्र लिखे से देखि।
चितई सीय कृपायतन जानी बिकल बिसेषि।।260।।
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