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चौपाई
जसि रघुबीर ब्याह बिधि बरनी। सकल कुअँर ब्याहे तेहिं करनी।।
कहि न जाइ कछु दाइज भूरी। रहा कनक मनि मंडपु पूरी।।
कंबल बसन बिचित्र पटोरे। भाँति भाँति बहु मोल न थोरे।।
गज रथ तुरग दास अरु दासी। धेनु अलंकृत कामदुहा सी।।
बस्तु अनेक करिअ किमि लेखा। कहि न जाइ जानहिं जिन्ह देखा।।
लोकपाल अवलोकि सिहाने। लीन्ह अवधपति सबु सुखु माने।।
दीन्ह जाचकन्हि जो जेहि भावा। उबरा सो जनवासेहिं आवा।।
तब कर जोरि जनकु मृदु बानी। बोले सब बरात सनमानी।।

छंद
सनमानि सकल बरात आदर दान बिनय बड़ाइ कै।
प्रमुदित महा मुनि बृंद बंदे पूजि प्रेम लड़ाइ कै।।
सिरु नाइ देव मनाइ सब सन कहत कर संपुट किएँ।
सुर साधु चाहत भाउ सिंधु कि तोष जल अंजलि दिएँ।।1।।
कर जोरि जनकु बहोरि बंधु समेत कोसलराय सों।
बोले मनोहर बयन सानि सनेह सील सुभाय सों।।
संबंध राजन रावरें हम बड़े अब सब बिधि भए।
एहि राज साज समेत सेवक जानिबे बिनु गथ लए।।2।।
ए दारिका परिचारिका करि पालिबीं करुना नई।
अपराधु छमिबो बोलि पठए बहुत हौं ढीट्यो कई।।
पुनि भानुकुलभूषन सकल सनमान निधि समधी किए।
कहि जाति नहिं बिनती परस्पर प्रेम परिपूरन हिए।।3।।
बृंदारका गन सुमन बरिसहिं राउ जनवासेहि चले।
दुंदुभी जय धुनि बेद धुनि नभ नगर कौतूहल भले।।
तब सखीं मंगल गान करत मुनीस आयसु पाइ कै।
दूलह दुलहिनिन्ह सहित सुंदरि चलीं कोहबर ल्याइ कै।।4।।

दोहा/सोरठा
पुनि पुनि रामहि चितव सिय सकुचति मनु सकुचै न।
हरत मनोहर मीन छबि प्रेम पिआसे नैन।।326।।

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