चौपाई
 भूप बिलोकि लिए उर लाई। बैठै हरषि रजायसु पाई।। 
 देखि रामु सब सभा जुड़ानी। लोचन लाभ अवधि अनुमानी।।
 पुनि बसिष्टु मुनि कौसिक आए। सुभग आसनन्हि मुनि बैठाए।। 
 सुतन्ह समेत पूजि पद लागे। निरखि रामु दोउ गुर अनुरागे।।
 कहहिं बसिष्टु धरम इतिहासा। सुनहिं महीसु सहित रनिवासा।। 
 मुनि मन अगम गाधिसुत करनी। मुदित बसिष्ट बिपुल बिधि बरनी।।
 बोले बामदेउ सब साँची। कीरति कलित लोक तिहुँ माची।। 
 सुनि आनंदु भयउ सब काहू। राम लखन उर अधिक उछाहू।।
दोहा/सोरठा
मंगल मोद उछाह नित जाहिं दिवस एहि भाँति। 
 उमगी अवध अनंद भरि अधिक अधिक अधिकाति।।359।।
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