1.204

चौपाई
बालचरित अति सरल सुहाए। सारद सेष संभु श्रुति गाए।।
जिन कर मन इन्ह सन नहिं राता। ते जन बंचित किए बिधाता।।
भए कुमार जबहिं सब भ्राता। दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता।।
गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल बिद्या सब आई।।
जाकी सहज स्वास श्रुति चारी। सो हरि पढ़ यह कौतुक भारी।।
बिद्या बिनय निपुन गुन सीला। खेलहिं खेल सकल नृपलीला।।
करतल बान धनुष अति सोहा। देखत रूप चराचर मोहा।।
जिन्ह बीथिन्ह बिहरहिं सब भाई। थकित होहिं सब लोग लुगाई।।

दोहा/सोरठा
कोसलपुर बासी नर नारि बृद्ध अरु बाल।
प्रानहु ते प्रिय लागत सब कहुँ राम कृपाल।।204।।

Pages