चौपाई
 पुनि बंदउँ सारद सुरसरिता। जुगल पुनीत मनोहर चरिता।। 
 मज्जन पान पाप हर एका। कहत सुनत एक हर अबिबेका।।
 गुर पितु मातु महेस भवानी। प्रनवउँ दीनबंधु दिन दानी।। 
 सेवक स्वामि सखा सिय पी के। हित निरुपधि सब बिधि तुलसीके।।
 कलि बिलोकि जग हित हर गिरिजा। साबर मंत्र जाल जिन्ह सिरिजा।। 
 अनमिल आखर अरथ न जापू। प्रगट प्रभाउ महेस प्रतापू।।
 सो उमेस मोहि पर अनुकूला। करिहिं कथा मुद मंगल मूला।। 
 सुमिरि सिवा सिव पाइ पसाऊ। बरनउँ रामचरित चित चाऊ।।
 भनिति मोरि सिव कृपाँ बिभाती। ससि समाज मिलि मनहुँ सुराती।। 
 जे एहि कथहि सनेह समेता। कहिहहिं सुनिहहिं समुझि सचेता।।
 होइहहिं राम चरन अनुरागी। कलि मल रहित सुमंगल भागी।।
दोहा/सोरठा
सपनेहुँ साचेहुँ मोहि पर जौं हर गौरि पसाउ। 
 तौ फुर होउ जो कहेउँ सब भाषा भनिति प्रभाउ।।15।।
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ramcharitmanas
1.15 
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  चौपाई
 पुनि बंदउँ सारद सुरसरिता। जुगल पुनीत मनोहर चरिता।। 
 मज्जन पान पाप हर एका। कहत सुनत एक हर अबिबेका।।
 गुर पितु मातु महेस भवानी। प्रनवउँ दीनबंधु दिन दानी।। 
 सेवक स्वामि सखा सिय पी के। हित निरुपधि सब बिधि तुलसीके।।
 कलि बिलोकि जग हित हर गिरिजा। साबर मंत्र जाल जिन्ह सिरिजा।। 
 अनमिल आखर अरथ न जापू। प्रगट प्रभाउ महेस प्रतापू।।
 सो उमेस मोहि पर अनुकूला। करिहिं कथा मुद मंगल मूला।। 
 सुमिरि सिवा सिव पाइ पसाऊ। बरनउँ रामचरित चित चाऊ।।
 भनिति मोरि सिव कृपाँ बिभाती। ससि समाज मिलि मनहुँ सुराती।। 
 जे एहि कथहि सनेह समेता। कहिहहिं सुनिहहिं समुझि सचेता।।
 होइहहिं राम चरन अनुरागी। कलि मल रहित सुमंगल भागी।।
दोहा/सोरठा
सपनेहुँ साचेहुँ मोहि पर जौं हर गौरि पसाउ। 
 तौ फुर होउ जो कहेउँ सब भाषा भनिति प्रभाउ।।15।।
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