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ramcharitmanas

1.179

चौपाई
रहे तहाँ निसिचर भट भारे। ते सब सुरन्ह समर संघारे।।
अब तहँ रहहिं सक्र के प्रेरे। रच्छक कोटि जच्छपति केरे।।
दसमुख कतहुँ खबरि असि पाई। सेन साजि गढ़ घेरेसि जाई।।
देखि बिकट भट बड़ि कटकाई। जच्छ जीव लै गए पराई।।
फिरि सब नगर दसानन देखा। गयउ सोच सुख भयउ बिसेषा।।
सुंदर सहज अगम अनुमानी। कीन्हि तहाँ रावन रजधानी।।
जेहि जस जोग बाँटि गृह दीन्हे। सुखी सकल रजनीचर कीन्हे।।
एक बार कुबेर पर धावा। पुष्पक जान जीति लै आवा।।

दोहा/सोरठा
कौतुकहीं कैलास पुनि लीन्हेसि जाइ उठाइ।
मनहुँ तौलि निज बाहुबल चला बहुत सुख पाइ।।179।।

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ramcharitmanas

1.179

चौपाई
रहे तहाँ निसिचर भट भारे। ते सब सुरन्ह समर संघारे।।
अब तहँ रहहिं सक्र के प्रेरे। रच्छक कोटि जच्छपति केरे।।
दसमुख कतहुँ खबरि असि पाई। सेन साजि गढ़ घेरेसि जाई।।
देखि बिकट भट बड़ि कटकाई। जच्छ जीव लै गए पराई।।
फिरि सब नगर दसानन देखा। गयउ सोच सुख भयउ बिसेषा।।
सुंदर सहज अगम अनुमानी। कीन्हि तहाँ रावन रजधानी।।
जेहि जस जोग बाँटि गृह दीन्हे। सुखी सकल रजनीचर कीन्हे।।
एक बार कुबेर पर धावा। पुष्पक जान जीति लै आवा।।

दोहा/सोरठा
कौतुकहीं कैलास पुनि लीन्हेसि जाइ उठाइ।
मनहुँ तौलि निज बाहुबल चला बहुत सुख पाइ।।179।।

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