चौपाई
बालचरित हरि बहुबिधि कीन्हा। अति अनंद दासन्ह कहँ दीन्हा।।
कछुक काल बीतें सब भाई। बड़े भए परिजन सुखदाई।।
चूड़ाकरन कीन्ह गुरु जाई। बिप्रन्ह पुनि दछिना बहु पाई।।
परम मनोहर चरित अपारा। करत फिरत चारिउ सुकुमारा।।
मन क्रम बचन अगोचर जोई। दसरथ अजिर बिचर प्रभु सोई।।
भोजन करत बोल जब राजा। नहिं आवत तजि बाल समाजा।।
कौसल्या जब बोलन जाई। ठुमकु ठुमकु प्रभु चलहिं पराई।।
निगम नेति सिव अंत न पावा। ताहि धरै जननी हठि धावा।।
धूरस धूरि भरें तनु आए। भूपति बिहसि गोद बैठाए।।
दोहा/सोरठा
भोजन करत चपल चित इत उत अवसरु पाइ।
भाजि चले किलकत मुख दधि ओदन लपटाइ।।203।।
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ramcharitmanas
1.203
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चौपाई
बालचरित हरि बहुबिधि कीन्हा। अति अनंद दासन्ह कहँ दीन्हा।।
कछुक काल बीतें सब भाई। बड़े भए परिजन सुखदाई।।
चूड़ाकरन कीन्ह गुरु जाई। बिप्रन्ह पुनि दछिना बहु पाई।।
परम मनोहर चरित अपारा। करत फिरत चारिउ सुकुमारा।।
मन क्रम बचन अगोचर जोई। दसरथ अजिर बिचर प्रभु सोई।।
भोजन करत बोल जब राजा। नहिं आवत तजि बाल समाजा।।
कौसल्या जब बोलन जाई। ठुमकु ठुमकु प्रभु चलहिं पराई।।
निगम नेति सिव अंत न पावा। ताहि धरै जननी हठि धावा।।
धूरस धूरि भरें तनु आए। भूपति बिहसि गोद बैठाए।।
दोहा/सोरठा
भोजन करत चपल चित इत उत अवसरु पाइ।
भाजि चले किलकत मुख दधि ओदन लपटाइ।।203।।
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