चौपाई
यह सब चरित कहा मैं गाई। आगिलि कथा सुनहु मन लाई।।
बिस्वामित्र महामुनि ग्यानी। बसहि बिपिन सुभ आश्रम जानी।।
जहँ जप जग्य मुनि करही। अति मारीच सुबाहुहि डरहीं।।
देखत जग्य निसाचर धावहि। करहि उपद्रव मुनि दुख पावहिं।।
गाधितनय मन चिंता ब्यापी। हरि बिनु मरहि न निसिचर पापी।।
तब मुनिवर मन कीन्ह बिचारा। प्रभु अवतरेउ हरन महि भारा।।
एहुँ मिस देखौं पद जाई। करि बिनती आनौ दोउ भाई।।
ग्यान बिराग सकल गुन अयना। सो प्रभु मै देखब भरि नयना।।
दोहा/सोरठा
बहुबिधि करत मनोरथ जात लागि नहिं बार।
करि मज्जन सरऊ जल गए भूप दरबार।।206।।
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ramcharitmanas
1.206
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चौपाई
यह सब चरित कहा मैं गाई। आगिलि कथा सुनहु मन लाई।।
बिस्वामित्र महामुनि ग्यानी। बसहि बिपिन सुभ आश्रम जानी।।
जहँ जप जग्य मुनि करही। अति मारीच सुबाहुहि डरहीं।।
देखत जग्य निसाचर धावहि। करहि उपद्रव मुनि दुख पावहिं।।
गाधितनय मन चिंता ब्यापी। हरि बिनु मरहि न निसिचर पापी।।
तब मुनिवर मन कीन्ह बिचारा। प्रभु अवतरेउ हरन महि भारा।।
एहुँ मिस देखौं पद जाई। करि बिनती आनौ दोउ भाई।।
ग्यान बिराग सकल गुन अयना। सो प्रभु मै देखब भरि नयना।।
दोहा/सोरठा
बहुबिधि करत मनोरथ जात लागि नहिं बार।
करि मज्जन सरऊ जल गए भूप दरबार।।206।।
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