चौपाई
धरि धीरजु एक आलि सयानी। सीता सन बोली गहि पानी।।
बहुरि गौरि कर ध्यान करेहू। भूपकिसोर देखि किन लेहू।।
सकुचि सीयँ तब नयन उघारे। सनमुख दोउ रघुसिंघ निहारे।।
नख सिख देखि राम कै सोभा। सुमिरि पिता पनु मनु अति छोभा।।
परबस सखिन्ह लखी जब सीता। भयउ गहरु सब कहहि सभीता।।
पुनि आउब एहि बेरिआँ काली। अस कहि मन बिहसी एक आली।।
गूढ़ गिरा सुनि सिय सकुचानी। भयउ बिलंबु मातु भय मानी।।
धरि बड़ि धीर रामु उर आने। फिरि अपनपउ पितुबस जाने।।
दोहा/सोरठा
देखन मिस मृग बिहग तरु फिरइ बहोरि बहोरि।
निरखि निरखि रघुबीर छबि बाढ़इ प्रीति न थोरि।। 234।।
Two Book View
ramcharitmanas
1.234
Pages |
ramcharitmanas
1.234
चौपाई
धरि धीरजु एक आलि सयानी। सीता सन बोली गहि पानी।।
बहुरि गौरि कर ध्यान करेहू। भूपकिसोर देखि किन लेहू।।
सकुचि सीयँ तब नयन उघारे। सनमुख दोउ रघुसिंघ निहारे।।
नख सिख देखि राम कै सोभा। सुमिरि पिता पनु मनु अति छोभा।।
परबस सखिन्ह लखी जब सीता। भयउ गहरु सब कहहि सभीता।।
पुनि आउब एहि बेरिआँ काली। अस कहि मन बिहसी एक आली।।
गूढ़ गिरा सुनि सिय सकुचानी। भयउ बिलंबु मातु भय मानी।।
धरि बड़ि धीर रामु उर आने। फिरि अपनपउ पितुबस जाने।।
दोहा/सोरठा
देखन मिस मृग बिहग तरु फिरइ बहोरि बहोरि।
निरखि निरखि रघुबीर छबि बाढ़इ प्रीति न थोरि।। 234।।
Pages |