चौपाई
प्रभुहि देखि सब नृप हिंयँ हारे। जनु राकेस उदय भएँ तारे।।
असि प्रतीति सब के मन माहीं। राम चाप तोरब सक नाहीं।।
बिनु भंजेहुँ भव धनुषु बिसाला। मेलिहि सीय राम उर माला।।
अस बिचारि गवनहु घर भाई। जसु प्रतापु बलु तेजु गवाँई।।
बिहसे अपर भूप सुनि बानी। जे अबिबेक अंध अभिमानी।।
तोरेहुँ धनुषु ब्याहु अवगाहा। बिनु तोरें को कुअँरि बिआहा।।
एक बार कालउ किन होऊ। सिय हित समर जितब हम सोऊ।।
यह सुनि अवर महिप मुसकाने। धरमसील हरिभगत सयाने।।
दोहा/सोरठा
सीय बिआहबि राम गरब दूरि करि नृपन्ह के।।
जीति को सक संग्राम दसरथ के रन बाँकुरे।।245।।
Two Book View
ramcharitmanas
1.245
Pages |
ramcharitmanas
1.245
चौपाई
प्रभुहि देखि सब नृप हिंयँ हारे। जनु राकेस उदय भएँ तारे।।
असि प्रतीति सब के मन माहीं। राम चाप तोरब सक नाहीं।।
बिनु भंजेहुँ भव धनुषु बिसाला। मेलिहि सीय राम उर माला।।
अस बिचारि गवनहु घर भाई। जसु प्रतापु बलु तेजु गवाँई।।
बिहसे अपर भूप सुनि बानी। जे अबिबेक अंध अभिमानी।।
तोरेहुँ धनुषु ब्याहु अवगाहा। बिनु तोरें को कुअँरि बिआहा।।
एक बार कालउ किन होऊ। सिय हित समर जितब हम सोऊ।।
यह सुनि अवर महिप मुसकाने। धरमसील हरिभगत सयाने।।
दोहा/सोरठा
सीय बिआहबि राम गरब दूरि करि नृपन्ह के।।
जीति को सक संग्राम दसरथ के रन बाँकुरे।।245।।
Pages |