Two Book View

ramcharitmanas

1.247

चौपाई
सिय सोभा नहिं जाइ बखानी। जगदंबिका रूप गुन खानी।।
उपमा सकल मोहि लघु लागीं। प्राकृत नारि अंग अनुरागीं।।
सिय बरनिअ तेइ उपमा देई। कुकबि कहाइ अजसु को लेई।।
जौ पटतरिअ तीय सम सीया। जग असि जुबति कहाँ कमनीया।।
गिरा मुखर तन अरध भवानी। रति अति दुखित अतनु पति जानी।।
बिष बारुनी बंधु प्रिय जेही। कहिअ रमासम किमि बैदेही।।
जौ छबि सुधा पयोनिधि होई। परम रूपमय कच्छप सोई।।
सोभा रजु मंदरु सिंगारू। मथै पानि पंकज निज मारू।।

दोहा/सोरठा
एहि बिधि उपजै लच्छि जब सुंदरता सुख मूल।
तदपि सकोच समेत कबि कहहिं सीय समतूल।।247।।

Pages

ramcharitmanas

1.247

चौपाई
सिय सोभा नहिं जाइ बखानी। जगदंबिका रूप गुन खानी।।
उपमा सकल मोहि लघु लागीं। प्राकृत नारि अंग अनुरागीं।।
सिय बरनिअ तेइ उपमा देई। कुकबि कहाइ अजसु को लेई।।
जौ पटतरिअ तीय सम सीया। जग असि जुबति कहाँ कमनीया।।
गिरा मुखर तन अरध भवानी। रति अति दुखित अतनु पति जानी।।
बिष बारुनी बंधु प्रिय जेही। कहिअ रमासम किमि बैदेही।।
जौ छबि सुधा पयोनिधि होई। परम रूपमय कच्छप सोई।।
सोभा रजु मंदरु सिंगारू। मथै पानि पंकज निज मारू।।

दोहा/सोरठा
एहि बिधि उपजै लच्छि जब सुंदरता सुख मूल।
तदपि सकोच समेत कबि कहहिं सीय समतूल।।247।।

Pages