Two Book View

ramcharitmanas

1.287

चौपाई
दूत अवधपुर पठवहु जाई। आनहिं नृप दसरथहि बोलाई।।
मुदित राउ कहि भलेहिं कृपाला। पठए दूत बोलि तेहि काला।।
बहुरि महाजन सकल बोलाए। आइ सबन्हि सादर सिर नाए।।
हाट बाट मंदिर सुरबासा। नगरु सँवारहु चारिहुँ पासा।।
हरषि चले निज निज गृह आए। पुनि परिचारक बोलि पठाए।।
रचहु बिचित्र बितान बनाई। सिर धरि बचन चले सचु पाई।।
पठए बोलि गुनी तिन्ह नाना। जे बितान बिधि कुसल सुजाना।।
बिधिहि बंदि तिन्ह कीन्ह अरंभा। बिरचे कनक कदलि के खंभा।।

दोहा/सोरठा
हरित मनिन्ह के पत्र फल पदुमराग के फूल।
रचना देखि बिचित्र अति मनु बिरंचि कर भूल।।287।।

Pages

ramcharitmanas

1.287

चौपाई
दूत अवधपुर पठवहु जाई। आनहिं नृप दसरथहि बोलाई।।
मुदित राउ कहि भलेहिं कृपाला। पठए दूत बोलि तेहि काला।।
बहुरि महाजन सकल बोलाए। आइ सबन्हि सादर सिर नाए।।
हाट बाट मंदिर सुरबासा। नगरु सँवारहु चारिहुँ पासा।।
हरषि चले निज निज गृह आए। पुनि परिचारक बोलि पठाए।।
रचहु बिचित्र बितान बनाई। सिर धरि बचन चले सचु पाई।।
पठए बोलि गुनी तिन्ह नाना। जे बितान बिधि कुसल सुजाना।।
बिधिहि बंदि तिन्ह कीन्ह अरंभा। बिरचे कनक कदलि के खंभा।।

दोहा/सोरठा
हरित मनिन्ह के पत्र फल पदुमराग के फूल।
रचना देखि बिचित्र अति मनु बिरंचि कर भूल।।287।।

Pages