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ramcharitmanas

1.299

चौपाई
बाँधे बिरद बीर रन गाढ़े। निकसि भए पुर बाहेर ठाढ़े।।
फेरहिं चतुर तुरग गति नाना। हरषहिं सुनि सुनि पवन निसाना।।
रथ सारथिन्ह बिचित्र बनाए। ध्वज पताक मनि भूषन लाए।।
चवँर चारु किंकिन धुनि करही। भानु जान सोभा अपहरहीं।।
सावँकरन अगनित हय होते। ते तिन्ह रथन्ह सारथिन्ह जोते।।
सुंदर सकल अलंकृत सोहे। जिन्हहि बिलोकत मुनि मन मोहे।।
जे जल चलहिं थलहि की नाई। टाप न बूड़ बेग अधिकाई।।
अस्त्र सस्त्र सबु साजु बनाई। रथी सारथिन्ह लिए बोलाई।।

दोहा/सोरठा
चढ़ि चढ़ि रथ बाहेर नगर लागी जुरन बरात।
होत सगुन सुन्दर सबहि जो जेहि कारज जात।।299।।

Pages

ramcharitmanas

1.299

चौपाई
बाँधे बिरद बीर रन गाढ़े। निकसि भए पुर बाहेर ठाढ़े।।
फेरहिं चतुर तुरग गति नाना। हरषहिं सुनि सुनि पवन निसाना।।
रथ सारथिन्ह बिचित्र बनाए। ध्वज पताक मनि भूषन लाए।।
चवँर चारु किंकिन धुनि करही। भानु जान सोभा अपहरहीं।।
सावँकरन अगनित हय होते। ते तिन्ह रथन्ह सारथिन्ह जोते।।
सुंदर सकल अलंकृत सोहे। जिन्हहि बिलोकत मुनि मन मोहे।।
जे जल चलहिं थलहि की नाई। टाप न बूड़ बेग अधिकाई।।
अस्त्र सस्त्र सबु साजु बनाई। रथी सारथिन्ह लिए बोलाई।।

दोहा/सोरठा
चढ़ि चढ़ि रथ बाहेर नगर लागी जुरन बरात।
होत सगुन सुन्दर सबहि जो जेहि कारज जात।।299।।

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