Two Book View

ramcharitmanas

1.328

चौपाई
पुनि जेवनार भई बहु भाँती। पठए जनक बोलाइ बराती।।
परत पाँवड़े बसन अनूपा। सुतन्ह समेत गवन कियो भूपा।।
सादर सबके पाय पखारे। जथाजोगु पीढ़न्ह बैठारे।।
धोए जनक अवधपति चरना। सीलु सनेहु जाइ नहिं बरना।।
बहुरि राम पद पंकज धोए। जे हर हृदय कमल महुँ गोए।।
तीनिउ भाई राम सम जानी। धोए चरन जनक निज पानी।।
आसन उचित सबहि नृप दीन्हे। बोलि सूपकारी सब लीन्हे।।
सादर लगे परन पनवारे। कनक कील मनि पान सँवारे।।

दोहा/सोरठा
सूपोदन सुरभी सरपि सुंदर स्वादु पुनीत।
छन महुँ सब कें परुसि गे चतुर सुआर बिनीत।।328।।

Pages

ramcharitmanas

1.328

चौपाई
पुनि जेवनार भई बहु भाँती। पठए जनक बोलाइ बराती।।
परत पाँवड़े बसन अनूपा। सुतन्ह समेत गवन कियो भूपा।।
सादर सबके पाय पखारे। जथाजोगु पीढ़न्ह बैठारे।।
धोए जनक अवधपति चरना। सीलु सनेहु जाइ नहिं बरना।।
बहुरि राम पद पंकज धोए। जे हर हृदय कमल महुँ गोए।।
तीनिउ भाई राम सम जानी। धोए चरन जनक निज पानी।।
आसन उचित सबहि नृप दीन्हे। बोलि सूपकारी सब लीन्हे।।
सादर लगे परन पनवारे। कनक कील मनि पान सँवारे।।

दोहा/सोरठा
सूपोदन सुरभी सरपि सुंदर स्वादु पुनीत।
छन महुँ सब कें परुसि गे चतुर सुआर बिनीत।।328।।

Pages