Two Book View

ramcharitmanas

1.334

चौपाई
सबु समाजु एहि भाँति बनाई। जनक अवधपुर दीन्ह पठाई।।
चलिहि बरात सुनत सब रानीं। बिकल मीनगन जनु लघु पानीं।।
पुनि पुनि सीय गोद करि लेहीं। देइ असीस सिखावनु देहीं।।
होएहु संतत पियहि पिआरी। चिरु अहिबात असीस हमारी।।
सासु ससुर गुर सेवा करेहू। पति रुख लखि आयसु अनुसरेहू।।
अति सनेह बस सखीं सयानी। नारि धरम सिखवहिं मृदु बानी।।
सादर सकल कुअँरि समुझाई। रानिन्ह बार बार उर लाई।।
बहुरि बहुरि भेटहिं महतारीं। कहहिं बिरंचि रचीं कत नारीं।।

दोहा/सोरठा
तेहि अवसर भाइन्ह सहित रामु भानु कुल केतु।
चले जनक मंदिर मुदित बिदा करावन हेतु।।334।।

Pages

ramcharitmanas

1.334

चौपाई
सबु समाजु एहि भाँति बनाई। जनक अवधपुर दीन्ह पठाई।।
चलिहि बरात सुनत सब रानीं। बिकल मीनगन जनु लघु पानीं।।
पुनि पुनि सीय गोद करि लेहीं। देइ असीस सिखावनु देहीं।।
होएहु संतत पियहि पिआरी। चिरु अहिबात असीस हमारी।।
सासु ससुर गुर सेवा करेहू। पति रुख लखि आयसु अनुसरेहू।।
अति सनेह बस सखीं सयानी। नारि धरम सिखवहिं मृदु बानी।।
सादर सकल कुअँरि समुझाई। रानिन्ह बार बार उर लाई।।
बहुरि बहुरि भेटहिं महतारीं। कहहिं बिरंचि रचीं कत नारीं।।

दोहा/सोरठा
तेहि अवसर भाइन्ह सहित रामु भानु कुल केतु।
चले जनक मंदिर मुदित बिदा करावन हेतु।।334।।

Pages