Two Book View

ramcharitmanas

1.355

चौपाई
मंगलगान करहिं बर भामिनि। भै सुखमूल मनोहर जामिनि।।
अँचइ पान सब काहूँ पाए। स्त्रग सुगंध भूषित छबि छाए।।
रामहि देखि रजायसु पाई। निज निज भवन चले सिर नाई।।
प्रेम प्रमोद बिनोदु बढ़ाई। समउ समाजु मनोहरताई।।
कहि न सकहि सत सारद सेसू। बेद बिरंचि महेस गनेसू।।
सो मै कहौं कवन बिधि बरनी। भूमिनागु सिर धरइ कि धरनी।।
नृप सब भाँति सबहि सनमानी। कहि मृदु बचन बोलाई रानी।।
बधू लरिकनीं पर घर आईं। राखेहु नयन पलक की नाई।।

दोहा/सोरठा
लरिका श्रमित उनीद बस सयन करावहु जाइ।
अस कहि गे बिश्रामगृहँ राम चरन चितु लाइ।।355।।

Pages

ramcharitmanas

1.355

चौपाई
मंगलगान करहिं बर भामिनि। भै सुखमूल मनोहर जामिनि।।
अँचइ पान सब काहूँ पाए। स्त्रग सुगंध भूषित छबि छाए।।
रामहि देखि रजायसु पाई। निज निज भवन चले सिर नाई।।
प्रेम प्रमोद बिनोदु बढ़ाई। समउ समाजु मनोहरताई।।
कहि न सकहि सत सारद सेसू। बेद बिरंचि महेस गनेसू।।
सो मै कहौं कवन बिधि बरनी। भूमिनागु सिर धरइ कि धरनी।।
नृप सब भाँति सबहि सनमानी। कहि मृदु बचन बोलाई रानी।।
बधू लरिकनीं पर घर आईं। राखेहु नयन पलक की नाई।।

दोहा/सोरठा
लरिका श्रमित उनीद बस सयन करावहु जाइ।
अस कहि गे बिश्रामगृहँ राम चरन चितु लाइ।।355।।

Pages