Two Book View

ramcharitmanas

1.49

चौपाई
रावन मरन मनुज कर जाचा। प्रभु बिधि बचनु कीन्ह चह साचा।।
जौं नहिं जाउँ रहइ पछितावा। करत बिचारु न बनत बनावा।।
एहि बिधि भए सोचबस ईसा। तेहि समय जाइ दससीसा।।
लीन्ह नीच मारीचहि संगा। भयउ तुरत सोइ कपट कुरंगा।।
करि छलु मूढ़ हरी बैदेही। प्रभु प्रभाउ तस बिदित न तेही।।
मृग बधि बन्धु सहित हरि आए। आश्रमु देखि नयन जल छाए।।
बिरह बिकल नर इव रघुराई। खोजत बिपिन फिरत दोउ भाई।।
कबहूँ जोग बियोग न जाकें। देखा प्रगट बिरह दुख ताकें।।

दोहा/सोरठा
अति विचित्र रघुपति चरित जानहिं परम सुजान।
जे मतिमंद बिमोह बस हृदयँ धरहिं कछु आन।।49।।

Pages

ramcharitmanas

1.49

चौपाई
रावन मरन मनुज कर जाचा। प्रभु बिधि बचनु कीन्ह चह साचा।।
जौं नहिं जाउँ रहइ पछितावा। करत बिचारु न बनत बनावा।।
एहि बिधि भए सोचबस ईसा। तेहि समय जाइ दससीसा।।
लीन्ह नीच मारीचहि संगा। भयउ तुरत सोइ कपट कुरंगा।।
करि छलु मूढ़ हरी बैदेही। प्रभु प्रभाउ तस बिदित न तेही।।
मृग बधि बन्धु सहित हरि आए। आश्रमु देखि नयन जल छाए।।
बिरह बिकल नर इव रघुराई। खोजत बिपिन फिरत दोउ भाई।।
कबहूँ जोग बियोग न जाकें। देखा प्रगट बिरह दुख ताकें।।

दोहा/सोरठा
अति विचित्र रघुपति चरित जानहिं परम सुजान।
जे मतिमंद बिमोह बस हृदयँ धरहिं कछु आन।।49।।

Pages