Two Book View

ramcharitmanas

1.64

चौपाई
सुनहु सभासद सकल मुनिंदा। कही सुनी जिन्ह संकर निंदा।।
सो फलु तुरत लहब सब काहूँ। भली भाँति पछिताब पिताहूँ।।
संत संभु श्रीपति अपबादा। सुनिअ जहाँ तहँ असि मरजादा।।
काटिअ तासु जीभ जो बसाई। श्रवन मूदि न त चलिअ पराई।।
जगदातमा महेसु पुरारी। जगत जनक सब के हितकारी।।
पिता मंदमति निंदत तेही। दच्छ सुक्र संभव यह देही।।
तजिहउँ तुरत देह तेहि हेतू। उर धरि चंद्रमौलि बृषकेतू।।
अस कहि जोग अगिनि तनु जारा। भयउ सकल मख हाहाकारा।।

दोहा/सोरठा
सती मरनु सुनि संभु गन लगे करन मख खीस।
जग्य बिधंस बिलोकि भृगु रच्छा कीन्हि मुनीस।।64।।

Pages

ramcharitmanas

1.64

चौपाई
सुनहु सभासद सकल मुनिंदा। कही सुनी जिन्ह संकर निंदा।।
सो फलु तुरत लहब सब काहूँ। भली भाँति पछिताब पिताहूँ।।
संत संभु श्रीपति अपबादा। सुनिअ जहाँ तहँ असि मरजादा।।
काटिअ तासु जीभ जो बसाई। श्रवन मूदि न त चलिअ पराई।।
जगदातमा महेसु पुरारी। जगत जनक सब के हितकारी।।
पिता मंदमति निंदत तेही। दच्छ सुक्र संभव यह देही।।
तजिहउँ तुरत देह तेहि हेतू। उर धरि चंद्रमौलि बृषकेतू।।
अस कहि जोग अगिनि तनु जारा। भयउ सकल मख हाहाकारा।।

दोहा/सोरठा
सती मरनु सुनि संभु गन लगे करन मख खीस।
जग्य बिधंस बिलोकि भृगु रच्छा कीन्हि मुनीस।।64।।

Pages