Two Book View

ramcharitmanas

1.72

चौपाई
अब जौ तुम्हहि सुता पर नेहू। तौ अस जाइ सिखावन देहू।।
करै सो तपु जेहिं मिलहिं महेसू। आन उपायँ न मिटहि कलेसू।।
नारद बचन सगर्भ सहेतू। सुंदर सब गुन निधि बृषकेतू।।
अस बिचारि तुम्ह तजहु असंका। सबहि भाँति संकरु अकलंका।।
सुनि पति बचन हरषि मन माहीं। गई तुरत उठि गिरिजा पाहीं।।
उमहि बिलोकि नयन भरे बारी। सहित सनेह गोद बैठारी।।
बारहिं बार लेति उर लाई। गदगद कंठ न कछु कहि जाई।।
जगत मातु सर्बग्य भवानी। मातु सुखद बोलीं मृदु बानी।।

दोहा/सोरठा
सुनहि मातु मैं दीख अस सपन सुनावउँ तोहि।
सुंदर गौर सुबिप्रबर अस उपदेसेउ मोहि।।72।।

Pages

ramcharitmanas

1.72

चौपाई
अब जौ तुम्हहि सुता पर नेहू। तौ अस जाइ सिखावन देहू।।
करै सो तपु जेहिं मिलहिं महेसू। आन उपायँ न मिटहि कलेसू।।
नारद बचन सगर्भ सहेतू। सुंदर सब गुन निधि बृषकेतू।।
अस बिचारि तुम्ह तजहु असंका। सबहि भाँति संकरु अकलंका।।
सुनि पति बचन हरषि मन माहीं। गई तुरत उठि गिरिजा पाहीं।।
उमहि बिलोकि नयन भरे बारी। सहित सनेह गोद बैठारी।।
बारहिं बार लेति उर लाई। गदगद कंठ न कछु कहि जाई।।
जगत मातु सर्बग्य भवानी। मातु सुखद बोलीं मृदु बानी।।

दोहा/सोरठा
सुनहि मातु मैं दीख अस सपन सुनावउँ तोहि।
सुंदर गौर सुबिप्रबर अस उपदेसेउ मोहि।।72।।

Pages