108

3.2.108

चौपाई
સુનિ મુનિ બચન રામુ સકુચાને। ભાવ ભગતિ આનંદ અઘાને।।
તબ રઘુબર મુનિ સુજસુ સુહાવા। કોટિ ભાિ કહિ સબહિ સુનાવા।।
સો બડ સો સબ ગુન ગન ગેહૂ। જેહિ મુનીસ તુમ્હ આદર દેહૂ।।
મુનિ રઘુબીર પરસપર નવહીં। બચન અગોચર સુખુ અનુભવહીં।।
યહ સુધિ પાઇ પ્રયાગ નિવાસી। બટુ તાપસ મુનિ સિદ્ધ ઉદાસી।।
ભરદ્વાજ આશ્રમ સબ આએ। દેખન દસરથ સુઅન સુહાએ।।
રામ પ્રનામ કીન્હ સબ કાહૂ। મુદિત ભએ લહિ લોયન લાહૂ।।
દેહિં અસીસ પરમ સુખુ પાઈ। ફિરે સરાહત સુંદરતાઈ।।

3.1.108

चौपाई
જૌં મો પર પ્રસન્ન સુખરાસી। જાનિઅ સત્ય મોહિ નિજ દાસી।।
તૌં પ્રભુ હરહુ મોર અગ્યાના। કહિ રઘુનાથ કથા બિધિ નાના।।
જાસુ ભવનુ સુરતરુ તર હોઈ। સહિ કિ દરિદ્ર જનિત દુખુ સોઈ।।
સસિભૂષન અસ હૃદયબિચારી। હરહુ નાથ મમ મતિ ભ્રમ ભારી।।
પ્રભુ જે મુનિ પરમારથબાદી। કહહિં રામ કહુબ્રહ્મ અનાદી।।
સેસ સારદા બેદ પુરાના। સકલ કરહિં રઘુપતિ ગુન ગાના।।
તુમ્હ પુનિ રામ રામ દિન રાતી। સાદર જપહુ અન આરાતી।।
રામુ સો અવધ નૃપતિ સુત સોઈ। કી અજ અગુન અલખગતિ કોઈ।।

2.7.108

चौपाई
নমামীশমীশান নির্বাণরূপং৷ বিংভুং ব্যাপকং ব্রহ্ম বেদস্বরূপং৷
নিজং নির্গুণং নির্বিকল্পং নিরীংহ৷ চিদাকাশমাকাশবাসং ভজেহং৷৷
নিরাকারমোংকারমূলং তুরীযং৷ গিরা গ্যান গোতীতমীশং গিরীশং৷৷
করালং মহাকাল কালং কৃপালং৷ গুণাগার সংসারপারং নতোহং৷৷
তুষারাদ্রি সংকাশ গৌরং গভীরং৷ মনোভূত কোটি প্রভা শ্রী শরীরং৷৷
স্ফুরন্মৌলি কল্লোলিনী চারু গংগা৷ লসদ্ভালবালেন্দু কংঠে ভুজংগা৷৷
চলত্কুংডলং ভ্রূ সুনেত্রং বিশালং৷ প্রসন্নাননং নীলকংঠং দযালং৷৷
মৃগাধীশচর্মাম্বরং মুণ্ডমালং৷ প্রিযং শংকরং সর্বনাথং ভজামি৷৷

2.6.108

चौपाई
অব সোই জতন করহু তুম্হ তাতা৷ দেখৌং নযন স্যাম মৃদু গাতা৷৷
তব হনুমান রাম পহিং জাঈ৷ জনকসুতা কৈ কুসল সুনাঈ৷৷
সুনি সংদেসু ভানুকুলভূষন৷ বোলি লিএ জুবরাজ বিভীষন৷৷
মারুতসুত কে সংগ সিধাবহু৷ সাদর জনকসুতহি লৈ আবহু৷৷
তুরতহিং সকল গএ জহসীতা৷ সেবহিং সব নিসিচরীং বিনীতা৷৷
বেগি বিভীষন তিন্হহি সিখাযো৷ তিন্হ বহু বিধি মজ্জন করবাযো৷৷
বহু প্রকার ভূষন পহিরাএ৷ সিবিকা রুচির সাজি পুনি ল্যাএ৷৷
তা পর হরষি চঢ়ী বৈদেহী৷ সুমিরি রাম সুখধাম সনেহী৷৷
বেতপানি রচ্ছক চহুপাসা৷ চলে সকল মন পরম হুলাসা৷৷

2.2.108

चौपाई
সুনি মুনি বচন রামু সকুচানে৷ ভাব ভগতি আনংদ অঘানে৷৷
তব রঘুবর মুনি সুজসু সুহাবা৷ কোটি ভাি কহি সবহি সুনাবা৷৷
সো বড সো সব গুন গন গেহূ৷ জেহি মুনীস তুম্হ আদর দেহূ৷৷
মুনি রঘুবীর পরসপর নবহীং৷ বচন অগোচর সুখু অনুভবহীং৷৷
যহ সুধি পাই প্রযাগ নিবাসী৷ বটু তাপস মুনি সিদ্ধ উদাসী৷৷
ভরদ্বাজ আশ্রম সব আএ৷ দেখন দসরথ সুঅন সুহাএ৷৷
রাম প্রনাম কীন্হ সব কাহূ৷ মুদিত ভএ লহি লোযন লাহূ৷৷
দেহিং অসীস পরম সুখু পাঈ৷ ফিরে সরাহত সুংদরতাঈ৷৷

2.1.108

चौपाई
জৌং মো পর প্রসন্ন সুখরাসী৷ জানিঅ সত্য মোহি নিজ দাসী৷৷
তৌং প্রভু হরহু মোর অগ্যানা৷ কহি রঘুনাথ কথা বিধি নানা৷৷
জাসু ভবনু সুরতরু তর হোঈ৷ সহি কি দরিদ্র জনিত দুখু সোঈ৷৷
সসিভূষন অস হৃদযবিচারী৷ হরহু নাথ মম মতি ভ্রম ভারী৷৷
প্রভু জে মুনি পরমারথবাদী৷ কহহিং রাম কহুব্রহ্ম অনাদী৷৷
সেস সারদা বেদ পুরানা৷ সকল করহিং রঘুপতি গুন গানা৷৷
তুম্হ পুনি রাম রাম দিন রাতী৷ সাদর জপহু অন আরাতী৷৷
রামু সো অবধ নৃপতি সুত সোঈ৷ কী অজ অগুন অলখগতি কোঈ৷৷

1.7.108

छंद
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विंभुं ब्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरींह। चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं।।
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।।
करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतोऽहं।।
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं। मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसद्भालबालेन्दु कंठे भुजंगा।।
चलत्कुंडलं भ्रू सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकंठं दयालं।।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि।।

1.6.108

चौपाई
अब सोइ जतन करहु तुम्ह ताता। देखौं नयन स्याम मृदु गाता।।
तब हनुमान राम पहिं जाई। जनकसुता कै कुसल सुनाई।।
सुनि संदेसु भानुकुलभूषन। बोलि लिए जुबराज बिभीषन।।
मारुतसुत के संग सिधावहु। सादर जनकसुतहि लै आवहु।।
तुरतहिं सकल गए जहँ सीता। सेवहिं सब निसिचरीं बिनीता।।
बेगि बिभीषन तिन्हहि सिखायो। तिन्ह बहु बिधि मज्जन करवायो।।
बहु प्रकार भूषन पहिराए। सिबिका रुचिर साजि पुनि ल्याए।।
ता पर हरषि चढ़ी बैदेही। सुमिरि राम सुखधाम सनेही।।
बेतपानि रच्छक चहुँ पासा। चले सकल मन परम हुलासा।।

1.2.108

चौपाई
सुनि मुनि बचन रामु सकुचाने। भाव भगति आनंद अघाने।।
तब रघुबर मुनि सुजसु सुहावा। कोटि भाँति कहि सबहि सुनावा।।
सो बड सो सब गुन गन गेहू। जेहि मुनीस तुम्ह आदर देहू।।
मुनि रघुबीर परसपर नवहीं। बचन अगोचर सुखु अनुभवहीं।।
यह सुधि पाइ प्रयाग निवासी। बटु तापस मुनि सिद्ध उदासी।।
भरद्वाज आश्रम सब आए। देखन दसरथ सुअन सुहाए।।
राम प्रनाम कीन्ह सब काहू। मुदित भए लहि लोयन लाहू।।
देहिं असीस परम सुखु पाई। फिरे सराहत सुंदरताई।।

दोहा/सोरठा

1.1.108

चौपाई
जौं मो पर प्रसन्न सुखरासी। जानिअ सत्य मोहि निज दासी।।
तौं प्रभु हरहु मोर अग्याना। कहि रघुनाथ कथा बिधि नाना।।
जासु भवनु सुरतरु तर होई। सहि कि दरिद्र जनित दुखु सोई।।
ससिभूषन अस हृदयँ बिचारी। हरहु नाथ मम मति भ्रम भारी।।
प्रभु जे मुनि परमारथबादी। कहहिं राम कहुँ ब्रह्म अनादी।।
सेस सारदा बेद पुराना। सकल करहिं रघुपति गुन गाना।।
तुम्ह पुनि राम राम दिन राती। सादर जपहु अनँग आराती।।
रामु सो अवध नृपति सुत सोई। की अज अगुन अलखगति कोई।।

दोहा/सोरठा

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