2

2.3.2

चौपाई
প্রেরিত মংত্র ব্রহ্মসর ধাবা৷ চলা ভাজি বাযস ভয পাবা৷৷
ধরি নিজ রুপ গযউ পিতু পাহীং৷ রাম বিমুখ রাখা তেহি নাহীং৷৷
ভা নিরাস উপজী মন ত্রাসা৷ জথা চক্র ভয রিষি দুর্বাসা৷৷
ব্রহ্মধাম সিবপুর সব লোকা৷ ফিরা শ্রমিত ব্যাকুল ভয সোকা৷৷
কাহূবৈঠন কহা ন ওহী৷ রাখি কো সকই রাম কর দ্রোহী৷৷
মাতু মৃত্যু পিতু সমন সমানা৷ সুধা হোই বিষ সুনু হরিজানা৷৷
মিত্র করই সত রিপু কৈ করনী৷ তা কহবিবুধনদী বৈতরনী৷৷
সব জগু তাহি অনলহু তে তাতা৷ জো রঘুবীর বিমুখ সুনু ভ্রাতা৷৷
নারদ দেখা বিকল জযংতা৷ লাগি দযা কোমল চিত সংতা৷৷

2.2.2

चौपाई
এক সময সব সহিত সমাজা৷ রাজসভারঘুরাজু বিরাজা৷৷
সকল সুকৃত মূরতি নরনাহূ৷ রাম সুজসু সুনি অতিহি উছাহূ৷৷
নৃপ সব রহহিং কৃপা অভিলাষেং৷ লোকপ করহিং প্রীতি রুখ রাখেং৷৷
তিভুবন তীনি কাল জগ মাহীং৷ ভূরি ভাগ দসরথ সম নাহীং৷৷
মংগলমূল রামু সুত জাসূ৷ জো কছু কহিজ থোর সবু তাসূ৷৷
রাযসুভাযমুকুরু কর লীন্হা৷ বদনু বিলোকি মুকুট সম কীন্হা৷৷
শ্রবন সমীপ ভএ সিত কেসা৷ মনহুজরঠপনু অস উপদেসা৷৷
নৃপ জুবরাজ রাম কহুদেহূ৷ জীবন জনম লাহু কিন লেহূ৷৷

2.1.2

चौपाई
গুরু পদ রজ মৃদু মংজুল অংজন৷ নযন অমিঅ দৃগ দোষ বিভংজন৷৷
তেহিং করি বিমল বিবেক বিলোচন৷ বরনউরাম চরিত ভব মোচন৷৷
বংদউপ্রথম মহীসুর চরনা৷ মোহ জনিত সংসয সব হরনা৷৷
সুজন সমাজ সকল গুন খানী৷ করউপ্রনাম সপ্রেম সুবানী৷৷
সাধু চরিত সুভ চরিত কপাসূ৷ নিরস বিসদ গুনময ফল জাসূ৷৷
জো সহি দুখ পরছিদ্র দুরাবা৷ বংদনীয জেহিং জগ জস পাবা৷৷
মুদ মংগলময সংত সমাজূ৷ জো জগ জংগম তীরথরাজূ৷৷
রাম ভক্তি জহসুরসরি ধারা৷ সরসই ব্রহ্ম বিচার প্রচারা৷৷
বিধি নিষেধময কলি মল হরনী৷ করম কথা রবিনংদনি বরনী৷৷

1.7.2

चौपाई
देखत हनूमान अति हरषेउ। पुलक गात लोचन जल बरषेउ।।
मन महँ बहुत भाँति सुख मानी। बोलेउ श्रवन सुधा सम बानी।।
जासु बिरहँ सोचहु दिन राती। रटहु निरंतर गुन गन पाँती।।
रघुकुल तिलक सुजन सुखदाता। आयउ कुसल देव मुनि त्राता।।
रिपु रन जीति सुजस सुर गावत। सीता सहित अनुज प्रभु आवत।।
सुनत बचन बिसरे सब दूखा। तृषावंत जिमि पाइ पियूषा।।
को तुम्ह तात कहाँ ते आए। मोहि परम प्रिय बचन सुनाए।।
मारुत सुत मैं कपि हनुमाना। नामु मोर सुनु कृपानिधाना।।
दीनबंधु रघुपति कर किंकर। सुनत भरत भेंटेउ उठि सादर।।

1.6.2

चौपाई
सैल बिसाल आनि कपि देहीं। कंदुक इव नल नील ते लेहीं।।
देखि सेतु अति सुंदर रचना। बिहसि कृपानिधि बोले बचना।।
परम रम्य उत्तम यह धरनी। महिमा अमित जाइ नहिं बरनी।।
करिहउँ इहाँ संभु थापना। मोरे हृदयँ परम कलपना।।
सुनि कपीस बहु दूत पठाए। मुनिबर सकल बोलि लै आए।।
लिंग थापि बिधिवत करि पूजा। सिव समान प्रिय मोहि न दूजा।।
सिव द्रोही मम भगत कहावा। सो नर सपनेहुँ मोहि न पावा।।
संकर बिमुख भगति चह मोरी। सो नारकी मूढ़ मति थोरी।।

दोहा/सोरठा

1.5.2

चौपाई
जात पवनसुत देवन्ह देखा। जानैं कहुँ बल बुद्धि बिसेषा।।
सुरसा नाम अहिन्ह कै माता। पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता।।
आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा। सुनत बचन कह पवनकुमारा।।
राम काजु करि फिरि मैं आवौं। सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं।।
तब तव बदन पैठिहउँ आई। सत्य कहउँ मोहि जान दे माई।।
कबनेहुँ जतन देइ नहिं जाना। ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना।।
जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा। कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा।।
सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ। तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ।।
जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा। तासु दून कपि रूप देखावा।।

1.4.2

चौपाई
कोसलेस दसरथ के जाए । हम पितु बचन मानि बन आए।।
नाम राम लछिमन दौउ भाई। संग नारि सुकुमारि सुहाई।।
इहाँ हरि निसिचर बैदेही। बिप्र फिरहिं हम खोजत तेही।।
आपन चरित कहा हम गाई। कहहु बिप्र निज कथा बुझाई।।
प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना। सो सुख उमा नहिं बरना।।
पुलकित तन मुख आव न बचना। देखत रुचिर बेष कै रचना।।
पुनि धीरजु धरि अस्तुति कीन्ही। हरष हृदयँ निज नाथहि चीन्ही।।
मोर न्याउ मैं पूछा साईं। तुम्ह पूछहु कस नर की नाईं।।
तव माया बस फिरउँ भुलाना। ता ते मैं नहिं प्रभु पहिचाना।।

1.3.2

चौपाई
प्रेरित मंत्र ब्रह्मसर धावा। चला भाजि बायस भय पावा।।
धरि निज रुप गयउ पितु पाहीं। राम बिमुख राखा तेहि नाहीं।।
भा निरास उपजी मन त्रासा। जथा चक्र भय रिषि दुर्बासा।।
ब्रह्मधाम सिवपुर सब लोका। फिरा श्रमित ब्याकुल भय सोका।।
काहूँ बैठन कहा न ओही। राखि को सकइ राम कर द्रोही।।
मातु मृत्यु पितु समन समाना। सुधा होइ बिष सुनु हरिजाना।।
मित्र करइ सत रिपु कै करनी। ता कहँ बिबुधनदी बैतरनी।।
सब जगु ताहि अनलहु ते ताता। जो रघुबीर बिमुख सुनु भ्राता।।
नारद देखा बिकल जयंता। लागि दया कोमल चित संता।।

1.2.2

चौपाई
एक समय सब सहित समाजा। राजसभाँ रघुराजु बिराजा।।
सकल सुकृत मूरति नरनाहू। राम सुजसु सुनि अतिहि उछाहू।।
नृप सब रहहिं कृपा अभिलाषें। लोकप करहिं प्रीति रुख राखें।।
तिभुवन तीनि काल जग माहीं। भूरि भाग दसरथ सम नाहीं।।
मंगलमूल रामु सुत जासू। जो कछु कहिज थोर सबु तासू।।
रायँ सुभायँ मुकुरु कर लीन्हा। बदनु बिलोकि मुकुट सम कीन्हा।।
श्रवन समीप भए सित केसा। मनहुँ जरठपनु अस उपदेसा।।
नृप जुबराज राम कहुँ देहू। जीवन जनम लाहु किन लेहू।।

दोहा/सोरठा

1.1.2

चौपाई
गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन। नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन।।
तेहिं करि बिमल बिबेक बिलोचन। बरनउँ राम चरित भव मोचन।।
बंदउँ प्रथम महीसुर चरना। मोह जनित संसय सब हरना।।
सुजन समाज सकल गुन खानी। करउँ प्रनाम सप्रेम सुबानी।।
साधु चरित सुभ चरित कपासू। निरस बिसद गुनमय फल जासू।।
जो सहि दुख परछिद्र दुरावा। बंदनीय जेहिं जग जस पावा।।
मुद मंगलमय संत समाजू। जो जग जंगम तीरथराजू।।
राम भक्ति जहँ सुरसरि धारा। सरसइ ब्रह्म बिचार प्रचारा।।
बिधि निषेधमय कलि मल हरनी। करम कथा रबिनंदनि बरनी।।

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