59

2.7.59

चौपाई
নানা ভাি মনহি সমুঝাবা৷ প্রগট ন গ্যান হৃদযভ্রম ছাবা৷৷
খেদ খিন্ন মন তর্ক বঢ়াঈ৷ ভযউ মোহবস তুম্হরিহিং নাঈ৷৷
ব্যাকুল গযউ দেবরিষি পাহীং৷ কহেসি জো সংসয নিজ মন মাহীং৷৷
সুনি নারদহি লাগি অতি দাযা৷ সুনু খগ প্রবল রাম কৈ মাযা৷৷
জো গ্যানিন্হ কর চিত অপহরঈ৷ বরিআঈ বিমোহ মন করঈ৷৷
জেহিং বহু বার নচাবা মোহী৷ সোই ব্যাপী বিহংগপতি তোহী৷৷
মহামোহ উপজা উর তোরেং৷ মিটিহি ন বেগি কহেং খগ মোরেং৷৷
চতুরানন পহিং জাহু খগেসা৷ সোই করেহু জেহি হোই নিদেসা৷৷

2.6.59

चौपाई
পরেউ মুরুছি মহি লাগত সাযক৷ সুমিরত রাম রাম রঘুনাযক৷৷
সুনি প্রিয বচন ভরত তব ধাএ৷ কপি সমীপ অতি আতুর আএ৷৷
বিকল বিলোকি কীস উর লাবা৷ জাগত নহিং বহু ভাি জগাবা৷৷
মুখ মলীন মন ভএ দুখারী৷ কহত বচন ভরি লোচন বারী৷৷
জেহিং বিধি রাম বিমুখ মোহি কীন্হা৷ তেহিং পুনি যহ দারুন দুখ দীন্হা৷৷
জৌং মোরেং মন বচ অরু কাযা৷ প্রীতি রাম পদ কমল অমাযা৷৷
তৌ কপি হোউ বিগত শ্রম সূলা৷ জৌং মো পর রঘুপতি অনুকূলা৷৷
সুনত বচন উঠি বৈঠ কপীসা৷ কহি জয জযতি কোসলাধীসা৷৷

2.5.59

चौपाई
সভয সিংধু গহি পদ প্রভু কেরে৷ ছমহু নাথ সব অবগুন মেরে৷৷
গগন সমীর অনল জল ধরনী৷ ইন্হ কই নাথ সহজ জড় করনী৷৷
তব প্রেরিত মাযাউপজাএ৷ সৃষ্টি হেতু সব গ্রংথনি গাএ৷৷
প্রভু আযসু জেহি কহজস অহঈ৷ সো তেহি ভাি রহে সুখ লহঈ৷৷
প্রভু ভল কীন্হী মোহি সিখ দীন্হী৷ মরজাদা পুনি তুম্হরী কীন্হী৷৷
ঢোল গবা সূদ্র পসু নারী৷ সকল তাড়না কে অধিকারী৷৷
প্রভু প্রতাপ মৈং জাব সুখাঈ৷ উতরিহি কটকু ন মোরি বড়াঈ৷৷
প্রভু অগ্যা অপেল শ্রুতি গাঈ৷ করৌং সো বেগি জৌ তুম্হহি সোহাঈ৷৷

2.2.59

चौपाई
মৈং পুনি পুত্রবধূ প্রিয পাঈ৷ রূপ রাসি গুন সীল সুহাঈ৷৷
নযন পুতরি করি প্রীতি বঢ়াঈ৷ রাখেউপ্রান জানিকিহিং লাঈ৷৷
কলপবেলি জিমি বহুবিধি লালী৷ সীংচি সনেহ সলিল প্রতিপালী৷৷
ফূলত ফলত ভযউ বিধি বামা৷ জানি ন জাই কাহ পরিনামা৷৷
পল পীঠ তজি গোদ হিংড়োরা৷ সিযন দীন্হ পগু অবনি কঠোরা৷৷
জিঅনমূরি জিমি জোগবত রহঊ দীপ বাতি নহিং টারন কহঊ৷
সোই সিয চলন চহতি বন সাথা৷ আযসু কাহ হোই রঘুনাথা৷
চংদ কিরন রস রসিক চকোরী৷ রবি রুখ নযন সকই কিমি জোরী৷৷

2.1.59

चौपाई
নিত নব সোচু সতীং উর ভারা৷ কব জৈহউদুখ সাগর পারা৷৷
মৈং জো কীন্হ রঘুপতি অপমানা৷ পুনিপতি বচনু মৃষা করি জানা৷৷
সো ফলু মোহি বিধাতাদীন্হা৷ জো কছু উচিত রহা সোই কীন্হা৷৷
অব বিধি অস বূঝিঅ নহি তোহী৷ সংকর বিমুখ জিআবসি মোহী৷৷
কহি ন জাঈ কছু হৃদয গলানী৷ মন মহুরামাহি সুমির সযানী৷৷
জৌ প্রভু দীনদযালু কহাবা৷ আরতী হরন বেদ জসু গাবা৷৷
তৌ মৈং বিনয করউকর জোরী৷ ছূটউ বেগি দেহ যহ মোরী৷৷
জৌং মোরে সিব চরন সনেহূ৷ মন ক্রম বচন সত্য ব্রতু এহূ৷৷

1.7.59

चौपाई
नाना भाँति मनहि समुझावा। प्रगट न ग्यान हृदयँ भ्रम छावा।।
खेद खिन्न मन तर्क बढ़ाई। भयउ मोहबस तुम्हरिहिं नाई।।
ब्याकुल गयउ देवरिषि पाहीं। कहेसि जो संसय निज मन माहीं।।
सुनि नारदहि लागि अति दाया। सुनु खग प्रबल राम कै माया।।
जो ग्यानिन्ह कर चित अपहरई। बरिआई बिमोह मन करई।।
जेहिं बहु बार नचावा मोही। सोइ ब्यापी बिहंगपति तोही।।
महामोह उपजा उर तोरें। मिटिहि न बेगि कहें खग मोरें।।
चतुरानन पहिं जाहु खगेसा। सोइ करेहु जेहि होइ निदेसा।।

1.6.59

चौपाई
परेउ मुरुछि महि लागत सायक। सुमिरत राम राम रघुनायक।।
सुनि प्रिय बचन भरत तब धाए। कपि समीप अति आतुर आए।।
बिकल बिलोकि कीस उर लावा। जागत नहिं बहु भाँति जगावा।।
मुख मलीन मन भए दुखारी। कहत बचन भरि लोचन बारी।।
जेहिं बिधि राम बिमुख मोहि कीन्हा। तेहिं पुनि यह दारुन दुख दीन्हा।।
जौं मोरें मन बच अरु काया। प्रीति राम पद कमल अमाया।।
तौ कपि होउ बिगत श्रम सूला। जौं मो पर रघुपति अनुकूला।।
सुनत बचन उठि बैठ कपीसा। कहि जय जयति कोसलाधीसा।।

दोहा/सोरठा

1.5.59

चौपाई
सभय सिंधु गहि पद प्रभु केरे। छमहु नाथ सब अवगुन मेरे।।
गगन समीर अनल जल धरनी। इन्ह कइ नाथ सहज जड़ करनी।।
तव प्रेरित मायाँ उपजाए। सृष्टि हेतु सब ग्रंथनि गाए।।
प्रभु आयसु जेहि कहँ जस अहई। सो तेहि भाँति रहे सुख लहई।।
प्रभु भल कीन्ही मोहि सिख दीन्ही। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्ही।।
ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी।।
प्रभु प्रताप मैं जाब सुखाई। उतरिहि कटकु न मोरि बड़ाई।।
प्रभु अग्या अपेल श्रुति गाई। करौं सो बेगि जौ तुम्हहि सोहाई।।

1.2.59

चौपाई
मैं पुनि पुत्रबधू प्रिय पाई। रूप रासि गुन सील सुहाई।।
नयन पुतरि करि प्रीति बढ़ाई। राखेउँ प्रान जानिकिहिं लाई।।
कलपबेलि जिमि बहुबिधि लाली। सींचि सनेह सलिल प्रतिपाली।।
फूलत फलत भयउ बिधि बामा। जानि न जाइ काह परिनामा।।
पलँग पीठ तजि गोद हिंड़ोरा। सियँ न दीन्ह पगु अवनि कठोरा।।
जिअनमूरि जिमि जोगवत रहऊँ। दीप बाति नहिं टारन कहऊँ।।
सोइ सिय चलन चहति बन साथा। आयसु काह होइ रघुनाथा।
चंद किरन रस रसिक चकोरी। रबि रुख नयन सकइ किमि जोरी।।

दोहा/सोरठा

1.1.59

चौपाई
नित नव सोचु सतीं उर भारा। कब जैहउँ दुख सागर पारा।।
मैं जो कीन्ह रघुपति अपमाना। पुनिपति बचनु मृषा करि जाना।।
सो फलु मोहि बिधाताँ दीन्हा। जो कछु उचित रहा सोइ कीन्हा।।
अब बिधि अस बूझिअ नहि तोही। संकर बिमुख जिआवसि मोही।।
कहि न जाई कछु हृदय गलानी। मन महुँ रामाहि सुमिर सयानी।।
जौ प्रभु दीनदयालु कहावा। आरती हरन बेद जसु गावा।।
तौ मैं बिनय करउँ कर जोरी। छूटउ बेगि देह यह मोरी।।
जौं मोरे सिव चरन सनेहू। मन क्रम बचन सत्य ब्रतु एहू।।

दोहा/सोरठा

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