64

3.2.64

चौपाई
સુનિ મૃદુ બચન મનોહર પિય કે। લોચન લલિત ભરે જલ સિય કે।।
સીતલ સિખ દાહક ભઇ કૈંસેં। ચકઇહિ સરદ ચંદ નિસિ જૈંસેં।।
ઉતરુ ન આવ બિકલ બૈદેહી। તજન ચહત સુચિ સ્વામિ સનેહી।।
બરબસ રોકિ બિલોચન બારી। ધરિ ધીરજુ ઉર અવનિકુમારી।।
લાગિ સાસુ પગ કહ કર જોરી। છમબિ દેબિ બડ઼િ અબિનય મોરી।।
દીન્હિ પ્રાનપતિ મોહિ સિખ સોઈ। જેહિ બિધિ મોર પરમ હિત હોઈ।।
મૈં પુનિ સમુઝિ દીખિ મન માહીં। પિય બિયોગ સમ દુખુ જગ નાહીં।।

3.1.64

चौपाई
સુનહુ સભાસદ સકલ મુનિંદા। કહી સુની જિન્હ સંકર નિંદા।।
સો ફલુ તુરત લહબ સબ કાહૂ ભલી ભાિ પછિતાબ પિતાહૂ।
સંત સંભુ શ્રીપતિ અપબાદા। સુનિઅ જહાતહઅસિ મરજાદા।।
કાટિઅ તાસુ જીભ જો બસાઈ। શ્રવન મૂદિ ન ત ચલિઅ પરાઈ।।
જગદાતમા મહેસુ પુરારી। જગત જનક સબ કે હિતકારી।।
પિતા મંદમતિ નિંદત તેહી। દચ્છ સુક્ર સંભવ યહ દેહી।।
તજિહઉતુરત દેહ તેહિ હેતૂ। ઉર ધરિ ચંદ્રમૌલિ બૃષકેતૂ।।
અસ કહિ જોગ અગિનિ તનુ જારા। ભયઉ સકલ મખ હાહાકારા।।

2.7.64

चौपाई
সুনহু তাত জেহি কারন আযউ সো সব ভযউ দরস তব পাযউ৷
দেখি পরম পাবন তব আশ্রম৷ গযউ মোহ সংসয নানা ভ্রম৷৷
অব শ্রীরাম কথা অতি পাবনি৷ সদা সুখদ দুখ পুংজ নসাবনি৷৷
সাদর তাত সুনাবহু মোহী৷ বার বার বিনবউপ্রভু তোহী৷৷
সুনত গরুড় কৈ গিরা বিনীতা৷ সরল সুপ্রেম সুখদ সুপুনীতা৷৷
ভযউ তাসু মন পরম উছাহা৷ লাগ কহৈ রঘুপতি গুন গাহা৷৷
প্রথমহিং অতি অনুরাগ ভবানী৷ রামচরিত সর কহেসি বখানী৷৷
পুনি নারদ কর মোহ অপারা৷ কহেসি বহুরি রাবন অবতারা৷৷
প্রভু অবতার কথা পুনি গাঈ৷ তব সিসু চরিত কহেসি মন লাঈ৷৷

2.6.64

चौपाई
মহিষ খাই করি মদিরা পানা৷ গর্জা বজ্রাঘাত সমানা৷৷
কুংভকরন দুর্মদ রন রংগা৷ চলা দুর্গ তজি সেন ন সংগা৷৷
দেখি বিভীষনু আগেং আযউ৷ পরেউ চরন নিজ নাম সুনাযউ৷৷
অনুজ উঠাই হৃদযতেহি লাযো৷ রঘুপতি ভক্ত জানি মন ভাযো৷৷
তাত লাত রাবন মোহি মারা৷ কহত পরম হিত মংত্র বিচারা৷৷
তেহিং গলানি রঘুপতি পহিং আযউ দেখি দীন প্রভু কে মন ভাযউ৷
সুনু সুত ভযউ কালবস রাবন৷ সো কি মান অব পরম সিখাবন৷৷
ধন্য ধন্য তৈং ধন্য বিভীষন৷ ভযহু তাত নিসিচর কুল ভূষন৷৷
বংধু বংস তৈং কীন্হ উজাগর৷ ভজেহু রাম সোভা সুখ সাগর৷৷

2.2.64

चौपाई
সুনি মৃদু বচন মনোহর পিয কে৷ লোচন ললিত ভরে জল সিয কে৷৷
সীতল সিখ দাহক ভই কৈংসেং৷ চকইহি সরদ চংদ নিসি জৈংসেং৷৷
উতরু ন আব বিকল বৈদেহী৷ তজন চহত সুচি স্বামি সনেহী৷৷
বরবস রোকি বিলোচন বারী৷ ধরি ধীরজু উর অবনিকুমারী৷৷
লাগি সাসু পগ কহ কর জোরী৷ ছমবি দেবি বড়ি অবিনয মোরী৷৷
দীন্হি প্রানপতি মোহি সিখ সোঈ৷ জেহি বিধি মোর পরম হিত হোঈ৷৷
মৈং পুনি সমুঝি দীখি মন মাহীং৷ পিয বিযোগ সম দুখু জগ নাহীং৷৷

2.1.64

चौपाई
সুনহু সভাসদ সকল মুনিংদা৷ কহী সুনী জিন্হ সংকর নিংদা৷৷
সো ফলু তুরত লহব সব কাহূ ভলী ভাি পছিতাব পিতাহূ৷
সংত সংভু শ্রীপতি অপবাদা৷ সুনিঅ জহাতহঅসি মরজাদা৷৷
কাটিঅ তাসু জীভ জো বসাঈ৷ শ্রবন মূদি ন ত চলিঅ পরাঈ৷৷
জগদাতমা মহেসু পুরারী৷ জগত জনক সব কে হিতকারী৷৷
পিতা মংদমতি নিংদত তেহী৷ দচ্ছ সুক্র সংভব যহ দেহী৷৷
তজিহউতুরত দেহ তেহি হেতূ৷ উর ধরি চংদ্রমৌলি বৃষকেতূ৷৷
অস কহি জোগ অগিনি তনু জারা৷ ভযউ সকল মখ হাহাকারা৷৷

1.7.64

चौपाई
सुनहु तात जेहि कारन आयउँ। सो सब भयउ दरस तव पायउँ।।
देखि परम पावन तव आश्रम। गयउ मोह संसय नाना भ्रम।।
अब श्रीराम कथा अति पावनि। सदा सुखद दुख पुंज नसावनि।।
सादर तात सुनावहु मोही। बार बार बिनवउँ प्रभु तोही।।
सुनत गरुड़ कै गिरा बिनीता। सरल सुप्रेम सुखद सुपुनीता।।
भयउ तासु मन परम उछाहा। लाग कहै रघुपति गुन गाहा।।
प्रथमहिं अति अनुराग भवानी। रामचरित सर कहेसि बखानी।।
पुनि नारद कर मोह अपारा। कहेसि बहुरि रावन अवतारा।।
प्रभु अवतार कथा पुनि गाई। तब सिसु चरित कहेसि मन लाई।।

1.6.64

चौपाई
महिष खाइ करि मदिरा पाना। गर्जा बज्राघात समाना।।
कुंभकरन दुर्मद रन रंगा। चला दुर्ग तजि सेन न संगा।।
देखि बिभीषनु आगें आयउ। परेउ चरन निज नाम सुनायउ।।
अनुज उठाइ हृदयँ तेहि लायो। रघुपति भक्त जानि मन भायो।।
तात लात रावन मोहि मारा। कहत परम हित मंत्र बिचारा।।
तेहिं गलानि रघुपति पहिं आयउँ। देखि दीन प्रभु के मन भायउँ।।
सुनु सुत भयउ कालबस रावन। सो कि मान अब परम सिखावन।।
धन्य धन्य तैं धन्य बिभीषन। भयहु तात निसिचर कुल भूषन।।
बंधु बंस तैं कीन्ह उजागर। भजेहु राम सोभा सुख सागर।।

1.2.64

चौपाई
सुनि मृदु बचन मनोहर पिय के। लोचन ललित भरे जल सिय के।।
सीतल सिख दाहक भइ कैंसें। चकइहि सरद चंद निसि जैंसें।।
उतरु न आव बिकल बैदेही। तजन चहत सुचि स्वामि सनेही।।
बरबस रोकि बिलोचन बारी। धरि धीरजु उर अवनिकुमारी।।
लागि सासु पग कह कर जोरी। छमबि देबि बड़ि अबिनय मोरी।।
दीन्हि प्रानपति मोहि सिख सोई। जेहि बिधि मोर परम हित होई।।
मैं पुनि समुझि दीखि मन माहीं। पिय बियोग सम दुखु जग नाहीं।।

दोहा/सोरठा
प्राननाथ करुनायतन सुंदर सुखद सुजान।

1.1.64

चौपाई
सुनहु सभासद सकल मुनिंदा। कही सुनी जिन्ह संकर निंदा।।
सो फलु तुरत लहब सब काहूँ। भली भाँति पछिताब पिताहूँ।।
संत संभु श्रीपति अपबादा। सुनिअ जहाँ तहँ असि मरजादा।।
काटिअ तासु जीभ जो बसाई। श्रवन मूदि न त चलिअ पराई।।
जगदातमा महेसु पुरारी। जगत जनक सब के हितकारी।।
पिता मंदमति निंदत तेही। दच्छ सुक्र संभव यह देही।।
तजिहउँ तुरत देह तेहि हेतू। उर धरि चंद्रमौलि बृषकेतू।।
अस कहि जोग अगिनि तनु जारा। भयउ सकल मख हाहाकारा।।

दोहा/सोरठा

Pages

Subscribe to RSS - 64