78

3.2.78

चौपाई
રાયરામ રાખન હિત લાગી। બહુત ઉપાય કિએ છલુ ત્યાગી।।
લખી રામ રુખ રહત ન જાને। ધરમ ધુરંધર ધીર સયાને।।
તબ નૃપ સીય લાઇ ઉર લીન્હી। અતિ હિત બહુત ભાિ સિખ દીન્હી।।
કહિ બન કે દુખ દુસહ સુનાએ। સાસુ સસુર પિતુ સુખ સમુઝાએ।।
સિય મનુ રામ ચરન અનુરાગા। ઘરુ ન સુગમુ બનુ બિષમુ ન લાગા।।
ઔરઉ સબહિં સીય સમુઝાઈ। કહિ કહિ બિપિન બિપતિ અધિકાઈ।।
સચિવ નારિ ગુર નારિ સયાની। સહિત સનેહ કહહિં મૃદુ બાની।।
તુમ્હ કહુતૌ ન દીન્હ બનબાસૂ। કરહુ જો કહહિં સસુર ગુર સાસૂ।।

3.1.78

चौपाई
રિષિન્હ ગૌરિ દેખી તહકૈસી। મૂરતિમંત તપસ્યા જૈસી।।
બોલે મુનિ સુનુ સૈલકુમારી। કરહુ કવન કારન તપુ ભારી।।
કેહિ અવરાધહુ કા તુમ્હ ચહહૂ। હમ સન સત્ય મરમુ કિન કહહૂ।।
કહત બચત મનુ અતિ સકુચાઈ। હિહહુ સુનિ હમારિ જડ઼તાઈ।।
મનુ હઠ પરા ન સુનઇ સિખાવા। ચહત બારિ પર ભીતિ ઉઠાવા।।
નારદ કહા સત્ય સોઇ જાના। બિનુ પંખન્હ હમ ચહહિં ઉડ઼ાના।।
દેખહુ મુનિ અબિબેકુ હમારા। ચાહિઅ સદા સિવહિ ભરતારા।।

दोहा/सोरठा
સુનત બચન બિહસે રિષય ગિરિસંભવ તબ દેહ।
નારદ કર ઉપદેસુ સુનિ કહહુ બસેઉ કિસુ ગેહ।।78।।

2.7.78

चौपाई
এতনা মন আনত খগরাযা৷ রঘুপতি প্রেরিত ব্যাপী মাযা৷৷
সো মাযা ন দুখদ মোহি কাহীং৷ আন জীব ইব সংসৃত নাহীং৷৷
নাথ ইহাকছু কারন আনা৷ সুনহু সো সাবধান হরিজানা৷৷
গ্যান অখংড এক সীতাবর৷ মাযা বস্য জীব সচরাচর৷৷
জৌং সব কেং রহ গ্যান একরস৷ ঈস্বর জীবহি ভেদ কহহু কস৷৷
মাযা বস্য জীব অভিমানী৷ ঈস বস্য মাযা গুনখানী৷৷
পরবস জীব স্ববস ভগবংতা৷ জীব অনেক এক শ্রীকংতা৷৷
মুধা ভেদ জদ্যপি কৃত মাযা৷ বিনু হরি জাই ন কোটি উপাযা৷৷

2.6.78

चौपाई
তিন্হহি গ্যান উপদেসা রাবন৷ আপুন মংদ কথা সুভ পাবন৷৷
পর উপদেস কুসল বহুতেরে৷ জে আচরহিং তে নর ন ঘনেরে৷৷
নিসা সিরানি ভযউ ভিনুসারা৷ লগে ভালু কপি চারিহুদ্বারা৷৷
সুভট বোলাই দসানন বোলা৷ রন সন্মুখ জা কর মন ডোলা৷৷
সো অবহীং বরু জাউ পরাঈ৷ সংজুগ বিমুখ ভএন ভলাঈ৷৷
নিজ ভুজ বল মৈং বযরু বঢ়াবা৷ দেহউউতরু জো রিপু চঢ়ি আবা৷৷
অস কহি মরুত বেগ রথ সাজা৷ বাজে সকল জুঝাঊ বাজা৷৷
চলে বীর সব অতুলিত বলী৷ জনু কজ্জল কৈ আী চলী৷৷
অসগুন অমিত হোহিং তেহি কালা৷ গনই ন ভুজবল গর্ব বিসালা৷৷

2.2.78

चौपाई
রাযরাম রাখন হিত লাগী৷ বহুত উপায কিএ ছলু ত্যাগী৷৷
লখী রাম রুখ রহত ন জানে৷ ধরম ধুরংধর ধীর সযানে৷৷
তব নৃপ সীয লাই উর লীন্হী৷ অতি হিত বহুত ভাি সিখ দীন্হী৷৷
কহি বন কে দুখ দুসহ সুনাএ৷ সাসু সসুর পিতু সুখ সমুঝাএ৷৷
সিয মনু রাম চরন অনুরাগা৷ ঘরু ন সুগমু বনু বিষমু ন লাগা৷৷
ঔরউ সবহিং সীয সমুঝাঈ৷ কহি কহি বিপিন বিপতি অধিকাঈ৷৷
সচিব নারি গুর নারি সযানী৷ সহিত সনেহ কহহিং মৃদু বানী৷৷
তুম্হ কহুতৌ ন দীন্হ বনবাসূ৷ করহু জো কহহিং সসুর গুর সাসূ৷৷

2.1.78

चौपाई
রিষিন্হ গৌরি দেখী তহকৈসী৷ মূরতিমংত তপস্যা জৈসী৷৷
বোলে মুনি সুনু সৈলকুমারী৷ করহু কবন কারন তপু ভারী৷৷
কেহি অবরাধহু কা তুম্হ চহহূ৷ হম সন সত্য মরমু কিন কহহূ৷৷
কহত বচত মনু অতি সকুচাঈ৷ হিহহু সুনি হমারি জড়তাঈ৷৷
মনু হঠ পরা ন সুনই সিখাবা৷ চহত বারি পর ভীতি উঠাবা৷৷
নারদ কহা সত্য সোই জানা৷ বিনু পংখন্হ হম চহহিং উড়ানা৷৷
দেখহু মুনি অবিবেকু হমারা৷ চাহিঅ সদা সিবহি ভরতারা৷৷

दोहा/सोरठा
সুনত বচন বিহসে রিষয গিরিসংভব তব দেহ৷
নারদ কর উপদেসু সুনি কহহু বসেউ কিসু গেহ৷৷78৷৷

1.7.78

चौपाई
एतना मन आनत खगराया। रघुपति प्रेरित ब्यापी माया।।
सो माया न दुखद मोहि काहीं। आन जीव इव संसृत नाहीं।।
नाथ इहाँ कछु कारन आना। सुनहु सो सावधान हरिजाना।।
ग्यान अखंड एक सीताबर। माया बस्य जीव सचराचर।।
जौं सब कें रह ग्यान एकरस। ईस्वर जीवहि भेद कहहु कस।।
माया बस्य जीव अभिमानी। ईस बस्य माया गुनखानी।।
परबस जीव स्वबस भगवंता। जीव अनेक एक श्रीकंता।।
मुधा भेद जद्यपि कृत माया। बिनु हरि जाइ न कोटि उपाया।।

1.6.78

चौपाई
तिन्हहि ग्यान उपदेसा रावन। आपुन मंद कथा सुभ पावन।।
पर उपदेस कुसल बहुतेरे। जे आचरहिं ते नर न घनेरे।।
निसा सिरानि भयउ भिनुसारा। लगे भालु कपि चारिहुँ द्वारा।।
सुभट बोलाइ दसानन बोला। रन सन्मुख जा कर मन डोला।।
सो अबहीं बरु जाउ पराई। संजुग बिमुख भएँ न भलाई।।
निज भुज बल मैं बयरु बढ़ावा। देहउँ उतरु जो रिपु चढ़ि आवा।।
अस कहि मरुत बेग रथ साजा। बाजे सकल जुझाऊ बाजा।।
चले बीर सब अतुलित बली। जनु कज्जल कै आँधी चली।।
असगुन अमित होहिं तेहि काला। गनइ न भुजबल गर्ब बिसाला।।

1.2.78

चौपाई
रायँ राम राखन हित लागी। बहुत उपाय किए छलु त्यागी।।
लखी राम रुख रहत न जाने। धरम धुरंधर धीर सयाने।।
तब नृप सीय लाइ उर लीन्ही। अति हित बहुत भाँति सिख दीन्ही।।
कहि बन के दुख दुसह सुनाए। सासु ससुर पितु सुख समुझाए।।
सिय मनु राम चरन अनुरागा। घरु न सुगमु बनु बिषमु न लागा।।
औरउ सबहिं सीय समुझाई। कहि कहि बिपिन बिपति अधिकाई।।
सचिव नारि गुर नारि सयानी। सहित सनेह कहहिं मृदु बानी।।
तुम्ह कहुँ तौ न दीन्ह बनबासू। करहु जो कहहिं ससुर गुर सासू।।

1.1.78

चौपाई
रिषिन्ह गौरि देखी तहँ कैसी। मूरतिमंत तपस्या जैसी।।
बोले मुनि सुनु सैलकुमारी। करहु कवन कारन तपु भारी।।
केहि अवराधहु का तुम्ह चहहू। हम सन सत्य मरमु किन कहहू।।
कहत बचत मनु अति सकुचाई। हँसिहहु सुनि हमारि जड़ताई।।
मनु हठ परा न सुनइ सिखावा। चहत बारि पर भीति उठावा।।
नारद कहा सत्य सोइ जाना। बिनु पंखन्ह हम चहहिं उड़ाना।।
देखहु मुनि अबिबेकु हमारा। चाहिअ सदा सिवहि भरतारा।।

दोहा/सोरठा
सुनत बचन बिहसे रिषय गिरिसंभव तब देह।
नारद कर उपदेसु सुनि कहहु बसेउ किसु गेह।।78।।

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