86

3.2.86

चौपाई
જાગે સકલ લોગ ભએભોરૂ। ગે રઘુનાથ ભયઉ અતિ સોરૂ।।
રથ કર ખોજ કતહહુનહિં પાવહિં। રામ રામ કહિ ચહુ દિસિ ધાવહિં।।
મનહુબારિનિધિ બૂડ઼ જહાજૂ। ભયઉ બિકલ બડ઼ બનિક સમાજૂ।।
એકહિ એક દેંહિં ઉપદેસૂ। તજે રામ હમ જાનિ કલેસૂ।।
નિંદહિં આપુ સરાહહિં મીના। ધિગ જીવનુ રઘુબીર બિહીના।।
જૌં પૈ પ્રિય બિયોગુ બિધિ કીન્હા। તૌ કસ મરનુ ન માગેં દીન્હા।।
એહિ બિધિ કરત પ્રલાપ કલાપા। આએ અવધ ભરે પરિતાપા।।
બિષમ બિયોગુ ન જાઇ બખાના। અવધિ આસ સબ રાખહિં પ્રાના।।

3.1.86

चौपाई
ઉભય ઘરી અસ કૌતુક ભયઊ। જૌ લગિ કામુ સંભુ પહિં ગયઊ।।
સિવહિ બિલોકિ સસંકેઉ મારૂ। ભયઉ જથાથિતિ સબુ સંસારૂ।।
ભએ તુરત સબ જીવ સુખારે। જિમિ મદ ઉતરિ ગએમતવારે।।
રુદ્રહિ દેખિ મદન ભય માના। દુરાધરષ દુર્ગમ ભગવાના।।
ફિરત લાજ કછુ કરિ નહિં જાઈ। મરનુ ઠાનિ મન રચેસિ ઉપાઈ।।
પ્રગટેસિ તુરત રુચિર રિતુરાજા। કુસુમિત નવ તરુ રાજિ બિરાજા।।
બન ઉપબન બાપિકા તડ઼ાગા। પરમ સુભગ સબ દિસા બિભાગા।।
જહતહજનુ ઉમગત અનુરાગા। દેખિ મુએહુમન મનસિજ જાગા।।

2.7.86

चौपाई
অব সুনু পরম বিমল মম বানী৷ সত্য সুগম নিগমাদি বখানী৷৷
নিজ সিদ্ধাংত সুনাবউতোহী৷ সুনু মন ধরু সব তজি ভজু মোহী৷৷
মম মাযা সংভব সংসারা৷ জীব চরাচর বিবিধি প্রকারা৷৷
সব মম প্রিয সব মম উপজাএ৷ সব তে অধিক মনুজ মোহি ভাএ৷৷
তিন্হ মহদ্বিজ দ্বিজ মহশ্রুতিধারী৷ তিন্হ মহুনিগম ধরম অনুসারী৷৷
তিন্হ মহপ্রিয বিরক্ত পুনি গ্যানী৷ গ্যানিহু তে অতি প্রিয বিগ্যানী৷৷
তিন্হ তে পুনি মোহি প্রিয নিজ দাসা৷ জেহি গতি মোরি ন দূসরি আসা৷৷
পুনি পুনি সত্য কহউতোহি পাহীং৷ মোহি সেবক সম প্রিয কোউ নাহীং৷৷
ভগতি হীন বিরংচি কিন হোঈ৷ সব জীবহু সম প্রিয মোহি সোঈ৷৷

2.6.86

चौपाई
চলত হোহিং অতি অসুভ ভযংকর৷ বৈঠহিং গীধ উড়াই সিরন্হ পর৷৷
ভযউ কালবস কাহু ন মানা৷ কহেসি বজাবহু জুদ্ধ নিসানা৷৷
চলী তমীচর অনী অপারা৷ বহু গজ রথ পদাতি অসবারা৷৷
প্রভু সন্মুখ ধাএ খল কৈংসেং৷ সলভ সমূহ অনল কহজৈংসেং৷৷
ইহাদেবতন্হ অস্তুতি কীন্হী৷ দারুন বিপতি হমহি এহিং দীন্হী৷৷
অব জনি রাম খেলাবহু এহী৷ অতিসয দুখিত হোতি বৈদেহী৷৷
দেব বচন সুনি প্রভু মুসকানা৷ উঠি রঘুবীর সুধারে বানা৷
জটা জূট দৃঢ় বাৈ মাথে৷ সোহহিং সুমন বীচ বিচ গাথে৷৷
অরুন নযন বারিদ তনু স্যামা৷ অখিল লোক লোচনাভিরামা৷৷

2.2.86

चौपाई
জাগে সকল লোগ ভএভোরূ৷ গে রঘুনাথ ভযউ অতি সোরূ৷৷
রথ কর খোজ কতহহুনহিং পাবহিং৷ রাম রাম কহি চহু দিসি ধাবহিং৷৷
মনহুবারিনিধি বূড় জহাজূ৷ ভযউ বিকল বড় বনিক সমাজূ৷৷
একহি এক দেংহিং উপদেসূ৷ তজে রাম হম জানি কলেসূ৷৷
নিংদহিং আপু সরাহহিং মীনা৷ ধিগ জীবনু রঘুবীর বিহীনা৷৷
জৌং পৈ প্রিয বিযোগু বিধি কীন্হা৷ তৌ কস মরনু ন মাগেং দীন্হা৷৷
এহি বিধি করত প্রলাপ কলাপা৷ আএ অবধ ভরে পরিতাপা৷৷
বিষম বিযোগু ন জাই বখানা৷ অবধি আস সব রাখহিং প্রানা৷৷

2.1.86

चौपाई
উভয ঘরী অস কৌতুক ভযঊ৷ জৌ লগি কামু সংভু পহিং গযঊ৷৷
সিবহি বিলোকি সসংকেউ মারূ৷ ভযউ জথাথিতি সবু সংসারূ৷৷
ভএ তুরত সব জীব সুখারে৷ জিমি মদ উতরি গএমতবারে৷৷
রুদ্রহি দেখি মদন ভয মানা৷ দুরাধরষ দুর্গম ভগবানা৷৷
ফিরত লাজ কছু করি নহিং জাঈ৷ মরনু ঠানি মন রচেসি উপাঈ৷৷
প্রগটেসি তুরত রুচির রিতুরাজা৷ কুসুমিত নব তরু রাজি বিরাজা৷৷
বন উপবন বাপিকা তড়াগা৷ পরম সুভগ সব দিসা বিভাগা৷৷
জহতহজনু উমগত অনুরাগা৷ দেখি মুএহুমন মনসিজ জাগা৷৷

1.7.86

चौपाई
अब सुनु परम बिमल मम बानी। सत्य सुगम निगमादि बखानी।।
निज सिद्धांत सुनावउँ तोही। सुनु मन धरु सब तजि भजु मोही।।
मम माया संभव संसारा। जीव चराचर बिबिधि प्रकारा।।
सब मम प्रिय सब मम उपजाए। सब ते अधिक मनुज मोहि भाए।।
तिन्ह महँ द्विज द्विज महँ श्रुतिधारी। तिन्ह महुँ निगम धरम अनुसारी।।
तिन्ह महँ प्रिय बिरक्त पुनि ग्यानी। ग्यानिहु ते अति प्रिय बिग्यानी।।
तिन्ह ते पुनि मोहि प्रिय निज दासा। जेहि गति मोरि न दूसरि आसा।।
पुनि पुनि सत्य कहउँ तोहि पाहीं। मोहि सेवक सम प्रिय कोउ नाहीं।।

1.6.86

चौपाई
चलत होहिं अति असुभ भयंकर। बैठहिं गीध उड़ाइ सिरन्ह पर।।
भयउ कालबस काहु न माना। कहेसि बजावहु जुद्ध निसाना।।
चली तमीचर अनी अपारा। बहु गज रथ पदाति असवारा।।
प्रभु सन्मुख धाए खल कैंसें। सलभ समूह अनल कहँ जैंसें।।
इहाँ देवतन्ह अस्तुति कीन्ही। दारुन बिपति हमहि एहिं दीन्ही।।
अब जनि राम खेलावहु एही। अतिसय दुखित होति बैदेही।।
देव बचन सुनि प्रभु मुसकाना। उठि रघुबीर सुधारे बाना।
जटा जूट दृढ़ बाँधै माथे। सोहहिं सुमन बीच बिच गाथे।।
अरुन नयन बारिद तनु स्यामा। अखिल लोक लोचनाभिरामा।।

1.2.86

चौपाई
जागे सकल लोग भएँ भोरू। गे रघुनाथ भयउ अति सोरू।।
रथ कर खोज कतहहुँ नहिं पावहिं। राम राम कहि चहु दिसि धावहिं।।
मनहुँ बारिनिधि बूड़ जहाजू। भयउ बिकल बड़ बनिक समाजू।।
एकहि एक देंहिं उपदेसू। तजे राम हम जानि कलेसू।।
निंदहिं आपु सराहहिं मीना। धिग जीवनु रघुबीर बिहीना।।
जौं पै प्रिय बियोगु बिधि कीन्हा। तौ कस मरनु न मागें दीन्हा।।
एहि बिधि करत प्रलाप कलापा। आए अवध भरे परितापा।।
बिषम बियोगु न जाइ बखाना। अवधि आस सब राखहिं प्राना।।

दोहा/सोरठा

1.1.86

चौपाई
उभय घरी अस कौतुक भयऊ। जौ लगि कामु संभु पहिं गयऊ।।
सिवहि बिलोकि ससंकेउ मारू। भयउ जथाथिति सबु संसारू।।
भए तुरत सब जीव सुखारे। जिमि मद उतरि गएँ मतवारे।।
रुद्रहि देखि मदन भय माना। दुराधरष दुर्गम भगवाना।।
फिरत लाज कछु करि नहिं जाई। मरनु ठानि मन रचेसि उपाई।।
प्रगटेसि तुरत रुचिर रितुराजा। कुसुमित नव तरु राजि बिराजा।।
बन उपबन बापिका तड़ागा। परम सुभग सब दिसा बिभागा।।
जहँ तहँ जनु उमगत अनुरागा। देखि मुएहुँ मन मनसिज जागा।।

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