94

3.2.94

चौपाई
સખા સમુઝિ અસ પરિહરિ મોહુ। સિય રઘુબીર ચરન રત હોહૂ।।
કહત રામ ગુન ભા ભિનુસારા। જાગે જગ મંગલ સુખદારા।।
સકલ સોચ કરિ રામ નહાવા। સુચિ સુજાન બટ છીર મગાવા।।
અનુજ સહિત સિર જટા બનાએ। દેખિ સુમંત્ર નયન જલ છાએ।।
હૃદયદાહુ અતિ બદન મલીના। કહ કર જોરિ બચન અતિ દીના।।
નાથ કહેઉ અસ કોસલનાથા। લૈ રથુ જાહુ રામ કેં સાથા।।
બનુ દેખાઇ સુરસરિ અન્હવાઈ। આનેહુ ફેરિ બેગિ દોઉ ભાઈ।।
લખનુ રામુ સિય આનેહુ ફેરી। સંસય સકલ સોચ નિબેરી।।

3.1.94

चौपाई
જસ દૂલહુ તસિ બની બરાતા। કૌતુક બિબિધ હોહિં મગ જાતા।।
ઇહાહિમાચલ રચેઉ બિતાના। અતિ બિચિત્ર નહિં જાઇ બખાના।।
સૈલ સકલ જહલગિ જગ માહીં। લઘુ બિસાલ નહિં બરનિ સિરાહીં।।
બન સાગર સબ નદીં તલાવા। હિમગિરિ સબ કહુનેવત પઠાવા।।
કામરૂપ સુંદર તન ધારી। સહિત સમાજ સહિત બર નારી।।
ગએ સકલ તુહિનાચલ ગેહા। ગાવહિં મંગલ સહિત સનેહા।।
પ્રથમહિં ગિરિ બહુ ગૃહ સરાએ। જથાજોગુ તહતહસબ છાએ।।
પુર સોભા અવલોકિ સુહાઈ। લાગઇ લઘુ બિરંચિ નિપુનાઈ।।

2.7.94

चौपाई
তুম্হ সর্বগ্য তন্য তম পারা৷ সুমতি সুসীল সরল আচারা৷৷
গ্যান বিরতি বিগ্যান নিবাসা৷ রঘুনাযক কে তুম্হ প্রিয দাসা৷৷
কারন কবন দেহ যহ পাঈ৷ তাত সকল মোহি কহহু বুঝাঈ৷৷
রাম চরিত সর সুংদর স্বামী৷ পাযহু কহাকহহু নভগামী৷৷
নাথ সুনা মৈং অস সিব পাহীং৷ মহা প্রলযহুনাস তব নাহীং৷৷
মুধা বচন নহিং ঈস্বর কহঈ৷ সোউ মোরেং মন সংসয অহঈ৷৷
অগ জগ জীব নাগ নর দেবা৷ নাথ সকল জগু কাল কলেবা৷৷
অংড কটাহ অমিত লয কারী৷ কালু সদা দুরতিক্রম ভারী৷৷

2.6.94

चौपाई
আবত দেখি সক্তি অতি ঘোরা৷ প্রনতারতি ভংজন পন মোরা৷৷
তুরত বিভীষন পাছেং মেলা৷ সন্মুখ রাম সহেউ সোই সেলা৷৷
লাগি সক্তি মুরুছা কছু ভঈ৷ প্রভু কৃত খেল সুরন্হ বিকলঈ৷৷
দেখি বিভীষন প্রভু শ্রম পাযো৷ গহি কর গদা ক্রুদ্ধ হোই ধাযো৷৷
রে কুভাগ্য সঠ মংদ কুবুদ্ধে৷ তৈং সুর নর মুনি নাগ বিরুদ্ধে৷৷
সাদর সিব কহুসীস চঢ়াএ৷ এক এক কে কোটিন্হ পাএ৷৷
তেহি কারন খল অব লগি বা্যো৷ অব তব কালু সীস পর নাচ্যো৷৷
রাম বিমুখ সঠ চহসি সংপদা৷ অস কহি হনেসি মাঝ উর গদা৷৷

2.2.94

चौपाई
সখা সমুঝি অস পরিহরি মোহু৷ সিয রঘুবীর চরন রত হোহূ৷৷
কহত রাম গুন ভা ভিনুসারা৷ জাগে জগ মংগল সুখদারা৷৷
সকল সোচ করি রাম নহাবা৷ সুচি সুজান বট ছীর মগাবা৷৷
অনুজ সহিত সির জটা বনাএ৷ দেখি সুমংত্র নযন জল ছাএ৷৷
হৃদযদাহু অতি বদন মলীনা৷ কহ কর জোরি বচন অতি দীনা৷৷
নাথ কহেউ অস কোসলনাথা৷ লৈ রথু জাহু রাম কেং সাথা৷৷
বনু দেখাই সুরসরি অন্হবাঈ৷ আনেহু ফেরি বেগি দোউ ভাঈ৷৷
লখনু রামু সিয আনেহু ফেরী৷ সংসয সকল সোচ নিবেরী৷৷

2.1.94

चौपाई
জস দূলহু তসি বনী বরাতা৷ কৌতুক বিবিধ হোহিং মগ জাতা৷৷
ইহাহিমাচল রচেউ বিতানা৷ অতি বিচিত্র নহিং জাই বখানা৷৷
সৈল সকল জহলগি জগ মাহীং৷ লঘু বিসাল নহিং বরনি সিরাহীং৷৷
বন সাগর সব নদীং তলাবা৷ হিমগিরি সব কহুনেবত পঠাবা৷৷
কামরূপ সুংদর তন ধারী৷ সহিত সমাজ সহিত বর নারী৷৷
গএ সকল তুহিনাচল গেহা৷ গাবহিং মংগল সহিত সনেহা৷৷
প্রথমহিং গিরি বহু গৃহ সরাএ৷ জথাজোগু তহতহসব ছাএ৷৷
পুর সোভা অবলোকি সুহাঈ৷ লাগই লঘু বিরংচি নিপুনাঈ৷৷

1.7.94

चौपाई
तुम्ह सर्बग्य तन्य तम पारा। सुमति सुसील सरल आचारा।।
ग्यान बिरति बिग्यान निवासा। रघुनायक के तुम्ह प्रिय दासा।।
कारन कवन देह यह पाई। तात सकल मोहि कहहु बुझाई।।
राम चरित सर सुंदर स्वामी। पायहु कहाँ कहहु नभगामी।।
नाथ सुना मैं अस सिव पाहीं। महा प्रलयहुँ नास तव नाहीं।।
मुधा बचन नहिं ईस्वर कहई। सोउ मोरें मन संसय अहई।।
अग जग जीव नाग नर देवा। नाथ सकल जगु काल कलेवा।।
अंड कटाह अमित लय कारी। कालु सदा दुरतिक्रम भारी।।

1.6.94

चौपाई
आवत देखि सक्ति अति घोरा। प्रनतारति भंजन पन मोरा।।
तुरत बिभीषन पाछें मेला। सन्मुख राम सहेउ सोइ सेला।।
लागि सक्ति मुरुछा कछु भई। प्रभु कृत खेल सुरन्ह बिकलई।।
देखि बिभीषन प्रभु श्रम पायो। गहि कर गदा क्रुद्ध होइ धायो।।
रे कुभाग्य सठ मंद कुबुद्धे। तैं सुर नर मुनि नाग बिरुद्धे।।
सादर सिव कहुँ सीस चढ़ाए। एक एक के कोटिन्ह पाए।।
तेहि कारन खल अब लगि बाँच्यो। अब तव कालु सीस पर नाच्यो।।
राम बिमुख सठ चहसि संपदा। अस कहि हनेसि माझ उर गदा।।

1.2.94

चौपाई
सखा समुझि अस परिहरि मोहु। सिय रघुबीर चरन रत होहू।।
कहत राम गुन भा भिनुसारा। जागे जग मंगल सुखदारा।।
सकल सोच करि राम नहावा। सुचि सुजान बट छीर मगावा।।
अनुज सहित सिर जटा बनाए। देखि सुमंत्र नयन जल छाए।।
हृदयँ दाहु अति बदन मलीना। कह कर जोरि बचन अति दीना।।
नाथ कहेउ अस कोसलनाथा। लै रथु जाहु राम कें साथा।।
बनु देखाइ सुरसरि अन्हवाई। आनेहु फेरि बेगि दोउ भाई।।
लखनु रामु सिय आनेहु फेरी। संसय सकल सँकोच निबेरी।।

दोहा/सोरठा

1.1.94

चौपाई
जस दूलहु तसि बनी बराता। कौतुक बिबिध होहिं मग जाता।।
इहाँ हिमाचल रचेउ बिताना। अति बिचित्र नहिं जाइ बखाना।।
सैल सकल जहँ लगि जग माहीं। लघु बिसाल नहिं बरनि सिराहीं।।
बन सागर सब नदीं तलावा। हिमगिरि सब कहुँ नेवत पठावा।।
कामरूप सुंदर तन धारी। सहित समाज सहित बर नारी।।
गए सकल तुहिनाचल गेहा। गावहिं मंगल सहित सनेहा।।
प्रथमहिं गिरि बहु गृह सँवराए। जथाजोगु तहँ तहँ सब छाए।।
पुर सोभा अवलोकि सुहाई। लागइ लघु बिरंचि निपुनाई।।

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