चौपाई
 एवमस्तु करि रमानिवासा। हरषि चले कुभंज रिषि पासा।। 
 बहुत दिवस गुर दरसन पाएँ। भए मोहि एहिं आश्रम आएँ।।
 अब प्रभु संग जाउँ गुर पाहीं। तुम्ह कहँ नाथ निहोरा नाहीं।। 
 देखि कृपानिधि मुनि चतुराई। लिए संग बिहसै द्वौ भाई।।
 पंथ कहत निज भगति अनूपा। मुनि आश्रम पहुँचे सुरभूपा।। 
 तुरत सुतीछन गुर पहिं गयऊ। करि दंडवत कहत अस भयऊ।।
 नाथ कौसलाधीस कुमारा। आए मिलन जगत आधारा।। 
 राम अनुज समेत बैदेही। निसि दिनु देव जपत हहु जेही।।
 सुनत अगस्ति तुरत उठि धाए। हरि बिलोकि लोचन जल छाए।। 
 मुनि पद कमल परे द्वौ भाई। रिषि अति प्रीति लिए उर लाई।।
 सादर कुसल पूछि मुनि ग्यानी। आसन बर बैठारे आनी।। 
 पुनि करि बहु प्रकार प्रभु पूजा। मोहि सम भाग्यवंत नहिं दूजा।।
 जहँ लगि रहे अपर मुनि बृंदा। हरषे सब बिलोकि सुखकंदा।।
दोहा/सोरठा
मुनि समूह महँ बैठे सन्मुख सब की ओर। 
 सरद इंदु तन चितवत मानहुँ निकर चकोर।।12।।
