चौपाई
 मुनि पद कमल नाइ करि सीसा। चले बनहि सुर नर मुनि ईसा।। 
 आगे राम अनुज पुनि पाछें। मुनि बर बेष बने अति काछें।।
 उमय बीच श्री सोहइ कैसी। ब्रह्म जीव बिच माया जैसी।। 
 सरिता बन गिरि अवघट घाटा। पति पहिचानी देहिं बर बाटा।।
 जहँ जहँ जाहि देव रघुराया। करहिं मेध तहँ तहँ नभ छाया।। 
 मिला असुर बिराध मग जाता। आवतहीं रघुवीर निपाता।।
 तुरतहिं रुचिर रूप तेहिं पावा। देखि दुखी निज धाम पठावा।। 
 पुनि आए जहँ मुनि सरभंगा। सुंदर अनुज जानकी संगा।।
दोहा/सोरठा
देखी राम मुख पंकज मुनिबर लोचन भृंग। 
 सादर पान करत अति धन्य जन्म सरभंग।।7।।
