चौपाई
 चरन नाइ सिरु बिनती कीन्ही। लछिमन अभय बाँह तेहि दीन्ही।। 
 क्रोधवंत लछिमन सुनि काना। कह कपीस अति भयँ अकुलाना।।
 सुनु हनुमंत संग लै तारा। करि बिनती समुझाउ कुमारा।। 
 तारा सहित जाइ हनुमाना। चरन बंदि प्रभु सुजस बखाना।।
 करि बिनती मंदिर लै आए। चरन पखारि पलँग बैठाए।। 
 तब कपीस चरनन्हि सिरु नावा। गहि भुज लछिमन कंठ लगावा।।
 नाथ बिषय सम मद कछु नाहीं। मुनि मन मोह करइ छन माहीं।। 
 सुनत बिनीत बचन सुख पावा। लछिमन तेहि बहु बिधि समुझावा।।
 पवन तनय सब कथा सुनाई। जेहि बिधि गए दूत समुदाई।।
दोहा/सोरठा
हरषि चले सुग्रीव तब अंगदादि कपि साथ। 
 रामानुज आगें करि आए जहँ रघुनाथ।।20।।
