चौपाई
 सुनि सुत बध लंकेस रिसाना। पठएसि मेघनाद बलवाना।। 
 मारसि जनि सुत बांधेसु ताही। देखिअ कपिहि कहाँ कर आही।।
 चला इंद्रजित अतुलित जोधा। बंधु निधन सुनि उपजा क्रोधा।। 
 कपि देखा दारुन भट आवा। कटकटाइ गर्जा अरु धावा।।
 अति बिसाल तरु एक उपारा। बिरथ कीन्ह लंकेस कुमारा।। 
 रहे महाभट ताके संगा। गहि गहि कपि मर्दइ निज अंगा।।
 तिन्हहि निपाति ताहि सन बाजा। भिरे जुगल मानहुँ गजराजा। 
 मुठिका मारि चढ़ा तरु जाई। ताहि एक छन मुरुछा आई।।
 उठि बहोरि कीन्हिसि बहु माया। जीति न जाइ प्रभंजन जाया।।
दोहा/सोरठा
ब्रह्म अस्त्र तेहिं साँधा कपि मन कीन्ह बिचार। 
 जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार।।19।।
