चौपाई
 तात राम नहिं नर भूपाला। भुवनेस्वर कालहु कर काला।। 
 ब्रह्म अनामय अज भगवंता। ब्यापक अजित अनादि अनंता।।
 गो द्विज धेनु देव हितकारी। कृपासिंधु मानुष तनुधारी।। 
 जन रंजन भंजन खल ब्राता। बेद धर्म रच्छक सुनु भ्राता।।
 ताहि बयरु तजि नाइअ माथा। प्रनतारति भंजन रघुनाथा।। 
 देहु नाथ प्रभु कहुँ बैदेही। भजहु राम बिनु हेतु सनेही।।
 सरन गएँ प्रभु ताहु न त्यागा। बिस्व द्रोह कृत अघ जेहि लागा।। 
 जासु नाम त्रय ताप नसावन। सोइ प्रभु प्रगट समुझु जियँ रावन।।
दोहा/सोरठा
बार बार पद लागउँ बिनय करउँ दससीस। 
 परिहरि मान मोह मद भजहु कोसलाधीस।।39(क)।।
 मुनि पुलस्ति निज सिष्य सन कहि पठई यह बात। 
 तुरत सो मैं प्रभु सन कही पाइ सुअवसरु तात।।39(ख)।।
