चौपाई
 तुरत नाइ लछिमन पद माथा। चले दूत बरनत गुन गाथा।। 
 कहत राम जसु लंकाँ आए। रावन चरन सीस तिन्ह नाए।।
 बिहसि दसानन पूँछी बाता। कहसि न सुक आपनि कुसलाता।। 
 पुनि कहु खबरि बिभीषन केरी। जाहि मृत्यु आई अति नेरी।।
 करत राज लंका सठ त्यागी। होइहि जब कर कीट अभागी।। 
 पुनि कहु भालु कीस कटकाई। कठिन काल प्रेरित चलि आई।।
 जिन्ह के जीवन कर रखवारा। भयउ मृदुल चित सिंधु बिचारा।। 
 कहु तपसिन्ह कै बात बहोरी। जिन्ह के हृदयँ त्रास अति मोरी।।
दोहा/सोरठा
-की भइ भेंट कि फिरि गए श्रवन सुजसु सुनि मोर। 
 कहसि न रिपु दल तेज बल बहुत चकित चित तोर।।53।।
