चौपाई
 लछिमन बान सरासन आनू। सोषौं बारिधि बिसिख कृसानू।। 
 सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीती। सहज कृपन सन सुंदर नीती।।
 ममता रत सन ग्यान कहानी। अति लोभी सन बिरति बखानी।। 
 क्रोधिहि सम कामिहि हरि कथा। ऊसर बीज बएँ फल जथा।।
 अस कहि रघुपति चाप चढ़ावा। यह मत लछिमन के मन भावा।। 
 संघानेउ प्रभु बिसिख कराला। उठी उदधि उर अंतर ज्वाला।।
 मकर उरग झष गन अकुलाने। जरत जंतु जलनिधि जब जाने।। 
 कनक थार भरि मनि गन नाना। बिप्र रूप आयउ तजि माना।।
दोहा/सोरठा
काटेहिं पइ कदरी फरइ कोटि जतन कोउ सींच। 
 बिनय न मान खगेस सुनु डाटेहिं पइ नव नीच।।58।।
