चौपाई
 जब ते राम प्रताप खगेसा। उदित भयउ अति प्रबल दिनेसा।। 
 पूरि प्रकास रहेउ तिहुँ लोका। बहुतेन्ह सुख बहुतन मन सोका।।
 जिन्हहि सोक ते कहउँ बखानी। प्रथम अबिद्या निसा नसानी।। 
 अघ उलूक जहँ तहाँ लुकाने। काम क्रोध कैरव सकुचाने।।
 बिबिध कर्म गुन काल सुभाऊ। ए चकोर सुख लहहिं न काऊ।। 
 मत्सर मान मोह मद चोरा। इन्ह कर हुनर न कवनिहुँ ओरा।।
 धरम तड़ाग ग्यान बिग्याना। ए पंकज बिकसे बिधि नाना।। 
 सुख संतोष बिराग बिबेका। बिगत सोक ए कोक अनेका।।
दोहा/सोरठा
यह प्रताप रबि जाकें उर जब करइ प्रकास।  
    पछिले बाढ़हिं प्रथम जे कहे ते पावहिं नास।।31।।
