चौपाई
 यह प्रभु चरित पवित्र सुहावा। कहहु कृपाल काग कहँ पावा।। 
 तुम्ह केहि भाँति सुना मदनारी। कहहु मोहि अति कौतुक भारी।।
 गरुड़ महाग्यानी गुन रासी। हरि सेवक अति निकट निवासी।। 
 तेहिं केहि हेतु काग सन जाई। सुनी कथा मुनि निकर बिहाई।।
 कहहु कवन बिधि भा संबादा। दोउ हरिभगत काग उरगादा।। 
 गौरि गिरा सुनि सरल सुहाई। बोले सिव सादर सुख पाई।।
 धन्य सती पावन मति तोरी। रघुपति चरन प्रीति नहिं थोरी।। 
 सुनहु परम पुनीत इतिहासा। जो सुनि सकल लोक भ्रम नासा।।
 उपजइ राम चरन बिस्वासा। भव निधि तर नर बिनहिं प्रयासा।।
दोहा/सोरठा
ऐसिअ प्रस्न बिहंगपति कीन्ह काग सन जाइ।  
    सो सब सादर कहिहउँ सुनहु उमा मन लाइ।।55।।
