चौपाई
 गिरिजा कहेउँ सो सब इतिहासा। मैं जेहि समय गयउँ खग पासा।। 
 अब सो कथा सुनहु जेही हेतू। गयउ काग पहिं खग कुल केतू।।
 जब रघुनाथ कीन्हि रन क्रीड़ा। समुझत चरित होति मोहि ब्रीड़ा।। 
 इंद्रजीत कर आपु बँधायो। तब नारद मुनि गरुड़ पठायो।।
 बंधन काटि गयो उरगादा। उपजा हृदयँ प्रचंड बिषादा।। 
 प्रभु बंधन समुझत बहु भाँती। करत बिचार उरग आराती।।
 ब्यापक ब्रह्म बिरज बागीसा। माया मोह पार परमीसा।। 
 सो अवतार सुनेउँ जग माहीं। देखेउँ सो प्रभाव कछु नाहीं।।
दोहा/सोरठा
-भव बंधन ते छूटहिं नर जपि जा कर नाम।  
     खर्च निसाचर बाँधेउ नागपास सोइ राम।।58।।
