चौपाई
 तब खगपति बिरंचि पहिं गयऊ। निज संदेह सुनावत भयऊ।। 
 सुनि बिरंचि रामहि सिरु नावा। समुझि प्रताप प्रेम अति छावा।।
 मन महुँ करइ बिचार बिधाता। माया बस कबि कोबिद ग्याता।। 
 हरि माया कर अमिति प्रभावा। बिपुल बार जेहिं मोहि नचावा।।
 अग जगमय जग मम उपराजा। नहिं आचरज मोह खगराजा।। 
 तब बोले बिधि गिरा सुहाई। जान महेस राम प्रभुताई।।
 बैनतेय संकर पहिं जाहू। तात अनत पूछहु जनि काहू।। 
 तहँ होइहि तव संसय हानी। चलेउ बिहंग सुनत बिधि बानी।।
दोहा/सोरठा
परमातुर बिहंगपति आयउ तब मो पास।  
    जात रहेउँ कुबेर गृह रहिहु उमा कैलास।।60।।
