चौपाई
 जेहि बिधि कपिपति कीस पठाए। सीता खोज सकल दिसि धाए।। 
 बिबर प्रबेस कीन्ह जेहि भाँती। कपिन्ह बहोरि मिला संपाती।।
 सुनि सब कथा समीरकुमारा। नाघत भयउ पयोधि अपारा।। 
 लंकाँ कपि प्रबेस जिमि कीन्हा। पुनि सीतहि धीरजु जिमि दीन्हा।।
 बन उजारि रावनहि प्रबोधी। पुर दहि नाघेउ बहुरि पयोधी।। 
 आए कपि सब जहँ रघुराई। बैदेही कि कुसल सुनाई।।
 सेन समेति जथा रघुबीरा। उतरे जाइ बारिनिधि तीरा।। 
 मिला बिभीषन जेहि बिधि आई। सागर निग्रह कथा सुनाई।।
दोहा/सोरठा
सेतु बाँधि कपि सेन जिमि उतरी सागर पार।  
    गयउ बसीठी बीरबर जेहि बिधि बालिकुमार।।67(क)।।
    निसिचर कीस लराई बरनिसि बिबिध प्रकार। 
    कुंभकरन घननाद कर बल पौरुष संघार।।67(ख)।।
