चौपाई
 गुन कृत सन्यपात नहिं केही। कोउ न मान मद तजेउ निबेही।। 
 जोबन ज्वर केहि नहिं बलकावा। ममता केहि कर जस न नसावा।।
 मच्छर काहि कलंक न लावा। काहि न सोक समीर डोलावा।। 
 चिंता साँपिनि को नहिं खाया। को जग जाहि न ब्यापी माया।।
 कीट मनोरथ दारु सरीरा। जेहि न लाग घुन को अस धीरा।। 
 सुत बित लोक ईषना तीनी। केहि के मति इन्ह कृत न मलीनी।।
 यह सब माया कर परिवारा। प्रबल अमिति को बरनै पारा।। 
 सिव चतुरानन जाहि डेराहीं। अपर जीव केहि लेखे माहीं।।