चौपाई
 गिरिजा सुनहु बिसद यह कथा। मैं सब कही मोरि मति जथा।। 
 राम चरित सत कोटि अपारा। श्रुति सारदा न बरनै पारा।।
 राम अनंत अनंत गुनानी। जन्म कर्म अनंत नामानी।। 
 जल सीकर महि रज गनि जाहीं। रघुपति चरित न बरनि सिराहीं।।
 बिमल कथा हरि पद दायनी। भगति होइ सुनि अनपायनी।। 
 उमा कहिउँ सब कथा सुहाई। जो भुसुंडि खगपतिहि सुनाई।।
 कछुक राम गुन कहेउँ बखानी। अब का कहौं सो कहहु भवानी।। 
 सुनि सुभ कथा उमा हरषानी। बोली अति बिनीत मृदु बानी।।
 धन्य धन्य मैं धन्य पुरारी। सुनेउँ राम गुन भव भय हारी।।