चौपाई
 मिलहिं न रघुपति बिनु अनुरागा। किएँ जोग तप ग्यान बिरागा।। 
 उत्तर दिसि सुंदर गिरि नीला। तहँ रह काकभुसुंडि सुसीला।।
 राम भगति पथ परम प्रबीना। ग्यानी गुन गृह बहु कालीना।। 
 राम कथा सो कहइ निरंतर। सादर सुनहिं बिबिध बिहंगबर।।
 जाइ सुनहु तहँ हरि गुन भूरी। होइहि मोह जनित दुख दूरी।। 
 मैं जब तेहि सब कहा बुझाई। चलेउ हरषि मम पद सिरु नाई।।
 ताते उमा न मैं समुझावा। रघुपति कृपाँ मरमु मैं पावा।। 
 होइहि कीन्ह कबहुँ अभिमाना। सो खौवै चह कृपानिधाना।।
 कछु तेहि ते पुनि मैं नहिं राखा। समुझइ खग खगही कै भाषा।।