चौपाई
 जप तप नियम जोग निज धर्मा। श्रुति संभव नाना सुभ कर्मा।। 
 ग्यान दया दम तीरथ मज्जन। जहँ लगि धर्म कहत श्रुति सज्जन।।
 आगम निगम पुरान अनेका। पढ़े सुने कर फल प्रभु एका।। 
 तब पद पंकज प्रीति निरंतर। सब साधन कर यह फल सुंदर।।
 छूटइ मल कि मलहि के धोएँ। घृत कि पाव कोइ बारि बिलोएँ।। 
 प्रेम भगति जल बिनु रघुराई। अभिअंतर मल कबहुँ न जाई।।
 सोइ सर्बग्य तग्य सोइ पंडित। सोइ गुन गृह बिग्यान अखंडित।। 
 दच्छ सकल लच्छन जुत सोई। जाकें पद सरोज रति होई।।
दोहा/सोरठा
नाथ एक बर मागउँ राम कृपा करि देहु।  
    जन्म जन्म प्रभु पद कमल कबहुँ घटै जनि नेहु।।49।।
