चौपाई
 अस कहि मुनि बसिष्ट गृह आए। कृपासिंधु के मन अति भाए।। 
 हनूमान भरतादिक भ्राता। संग लिए सेवक सुखदाता।।
 पुनि कृपाल पुर बाहेर गए। गज रथ तुरग मगावत भए।। 
 देखि कृपा करि सकल सराहे। दिए उचित जिन्ह जिन्ह तेइ चाहे।।
 हरन सकल श्रम प्रभु श्रम पाई। गए जहाँ सीतल अवँराई।। 
 भरत दीन्ह निज बसन डसाई। बैठे प्रभु सेवहिं सब भाई।।
 मारुतसुत तब मारूत करई। पुलक बपुष लोचन जल भरई।। 
 हनूमान सम नहिं बड़भागी। नहिं कोउ राम चरन अनुरागी।।
 गिरिजा जासु प्रीति सेवकाई। बार बार प्रभु निज मुख गाई।।
दोहा/सोरठा
तेहिं अवसर मुनि नारद आए करतल बीन।  
    गावन लगे राम कल कीरति सदा नबीन।।50।।
