चौपाई
 मैं जिमि कथा सुनी भव मोचनि। सो प्रसंग सुनु सुमुखि सुलोचनि।। 
 प्रथम दच्छ गृह तव अवतारा। सती नाम तब रहा तुम्हारा।।
 दच्छ जग्य तब भा अपमाना। तुम्ह अति क्रोध तजे तब प्राना।। 
 मम अनुचरन्ह कीन्ह मख भंगा। जानहु तुम्ह सो सकल प्रसंगा।।
 तब अति सोच भयउ मन मोरें। दुखी भयउँ बियोग प्रिय तोरें।। 
 सुंदर बन गिरि सरित तड़ागा। कौतुक देखत फिरउँ बेरागा।।
 गिरि सुमेर उत्तर दिसि दूरी। नील सैल एक सुन्दर भूरी।। 
 तासु कनकमय सिखर सुहाए। चारि चारु मोरे मन भाए।।
 तिन्ह पर एक एक बिटप बिसाला। बट पीपर पाकरी रसाला।। 
 सैलोपरि सर सुंदर सोहा। मनि सोपान देखि मन मोहा।।
दोहा/सोरठा
-सीतल अमल मधुर जल जलज बिपुल बहुरंग।  
     कूजत कल रव हंस गन गुंजत मजुंल भृंग।।56।।
